रविशंकर उपाध्याय4पटना.
नालंदा का सिलाव का खाजा जीआई टैग यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग पाने वाली पहली मिठाई हो गयी है. जीआई टैग के क्षेत्र में बिहार के मिठाईयों की यह पहली औपचारिक इंट्री है. अभी तक बिहार के हस्तकरघा उद्योगों और कतरनी धान-मगही पान को ही जीआई टैग मिला है जिसमें मधुबनी पेंटिंग, भागलपुरी सिल्क, सुजनी और खतवा कला जीआइ टैग से युक्त उत्पाद शामिल हैं. सिलाव खाजा औद्योगिक स्वावलंबी सहकारी समिति के आवेदन पर चेन्नई स्थित जियोग्राफिकल इंडिकेशंस रजिस्ट्री ने 11 दिसंबर को जीआई टैग प्रदान किया है. बिहार के कला व संस्कृति विभाग द्वारा 2017 में तीनों मिठाईयों को जीआई टैग दिलाने के लिए प्रक्रिया शुरू हुई थी. इसके लिए बिहार विरासत विकास समिति को जिम्मेवारी दी गयी थी. विरासत विकास समिति ने इसके लिए कागजी काम पूरा किया था. डॉक्यूमेंटेशन में बताया गया था कि 1872-73 में ब्रिटिश आर्कियोलॉजिस्ट जेडी बेगलर ने इसका उल्लेख किया था और इसे मिठाईयों का राजा बताया था. इस मिठाई का प्रयोग महात्मा बुद्ध द्वारा करने के भी दस्तावेज प्रस्तुत किये गये थे.
किसी उत्पाद की पहचान बताने वाली ग्लोबल टैगिंग है जीआई
जीआई यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन किसी उत्पाद की पहचान बताने वाली ग्लोबल टैगिंग होती है. जो इसके अधिकृत मालिक या प्रयोगकर्ता को जीआई के टैग लगाने का कानूनी अधिकार प्रदान करता है. गैर-अधिकृत व्यक्ति इसका प्रयोग नहीं कर सकता. जीआई टैग को ‘विश्व व्यापार संगठन’ से भी संरक्षण मिलता है. हर उत्पाद की विशिष्ट पहचान में उसका उद्भव, उसकी गुणवत्ता, प्रतिष्ठा तथा अन्य विशेषताएं शामिल होती है. जीआई दो प्रकार के होते हैं. पहले प्रकार में वे भौगोलिक नाम हैं, जो उत्पाद के उद्भव के स्थान का नाम बताते हैं जैसे दार्जिलिंग चाय आदि. दूसरे गैर-भौगोलिक पारंपरिक नाम, जो यह बताते हैं कि उत्पाद किसी एक क्षेत्र विशेष से संबद्ध है.
''बिहार विरासत विकास समिति ने किया था डॉक्यूमेंटेशन''
हमें अभी तक औपचारिक नोटिफिकेशन नहीं मिला है लेकिन अनौपचारिक सूचना मिल चुकी है. सिलाव का खाजा जीआई टैग से जुड़ने वाली पहली मिठाई बन गयी है. हमें खुशी है कि हमने इसका डॉक्यूमेंटेशन किया था. जीआइआर के दिल्ली और चेन्नई के अधिकारियों के साथ कोलकाता में हुई बैठक में इसपर औपचारिक सहमति 2017 में हो गयी थी.
-विजय कुमार चौधरी, एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर, बिहार विरासत विकास समिति
नालंदा का सिलाव का खाजा जीआई टैग यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग पाने वाली पहली मिठाई हो गयी है. जीआई टैग के क्षेत्र में बिहार के मिठाईयों की यह पहली औपचारिक इंट्री है. अभी तक बिहार के हस्तकरघा उद्योगों और कतरनी धान-मगही पान को ही जीआई टैग मिला है जिसमें मधुबनी पेंटिंग, भागलपुरी सिल्क, सुजनी और खतवा कला जीआइ टैग से युक्त उत्पाद शामिल हैं. सिलाव खाजा औद्योगिक स्वावलंबी सहकारी समिति के आवेदन पर चेन्नई स्थित जियोग्राफिकल इंडिकेशंस रजिस्ट्री ने 11 दिसंबर को जीआई टैग प्रदान किया है. बिहार के कला व संस्कृति विभाग द्वारा 2017 में तीनों मिठाईयों को जीआई टैग दिलाने के लिए प्रक्रिया शुरू हुई थी. इसके लिए बिहार विरासत विकास समिति को जिम्मेवारी दी गयी थी. विरासत विकास समिति ने इसके लिए कागजी काम पूरा किया था. डॉक्यूमेंटेशन में बताया गया था कि 1872-73 में ब्रिटिश आर्कियोलॉजिस्ट जेडी बेगलर ने इसका उल्लेख किया था और इसे मिठाईयों का राजा बताया था. इस मिठाई का प्रयोग महात्मा बुद्ध द्वारा करने के भी दस्तावेज प्रस्तुत किये गये थे.
किसी उत्पाद की पहचान बताने वाली ग्लोबल टैगिंग है जीआई
जीआई यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन किसी उत्पाद की पहचान बताने वाली ग्लोबल टैगिंग होती है. जो इसके अधिकृत मालिक या प्रयोगकर्ता को जीआई के टैग लगाने का कानूनी अधिकार प्रदान करता है. गैर-अधिकृत व्यक्ति इसका प्रयोग नहीं कर सकता. जीआई टैग को ‘विश्व व्यापार संगठन’ से भी संरक्षण मिलता है. हर उत्पाद की विशिष्ट पहचान में उसका उद्भव, उसकी गुणवत्ता, प्रतिष्ठा तथा अन्य विशेषताएं शामिल होती है. जीआई दो प्रकार के होते हैं. पहले प्रकार में वे भौगोलिक नाम हैं, जो उत्पाद के उद्भव के स्थान का नाम बताते हैं जैसे दार्जिलिंग चाय आदि. दूसरे गैर-भौगोलिक पारंपरिक नाम, जो यह बताते हैं कि उत्पाद किसी एक क्षेत्र विशेष से संबद्ध है.
''बिहार विरासत विकास समिति ने किया था डॉक्यूमेंटेशन''
हमें अभी तक औपचारिक नोटिफिकेशन नहीं मिला है लेकिन अनौपचारिक सूचना मिल चुकी है. सिलाव का खाजा जीआई टैग से जुड़ने वाली पहली मिठाई बन गयी है. हमें खुशी है कि हमने इसका डॉक्यूमेंटेशन किया था. जीआइआर के दिल्ली और चेन्नई के अधिकारियों के साथ कोलकाता में हुई बैठक में इसपर औपचारिक सहमति 2017 में हो गयी थी.
-विजय कुमार चौधरी, एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर, बिहार विरासत विकास समिति