-भूंजा में तेल-प्याज मिलाइए या मिक्चर, कचरी मिलाइए या दालमोट. स्वाद का सरताज है भूंजा
पटना.
गर्मी की धूल भरी हवाओं को झेलने के बाद थक चुकी शाम हो या फिर सर्द हवाओं से सिहरती गर्म आगोश ढूंढ़ती शाम. बरसात की बूंदाें पर थिरकती शाम के साथ हो या बसंत की जवां होती हसरतों भरी शाम. हरेक शाम में जायके की तलाश का ट्रेडमार्क है अपना भूंजा. जैसा आप सबको मालूम है कि बिहारी खाद्य पदार्थों में चावल की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. इस कारण चावल से बनने वाले कई तरह के जायके हमारे मेनू में शामिल होते हैं. भूना हुआ चावल जो भूंजा या मूढ़ी भी कहा जाता है, हमारे शाम के नाश्ते का सबसे अहम हिस्सा है.
इसमें चना, मकई, मटर और चूड़ा मिक्स कर दीजिये या मौसम के अनुसार हरा चना और दालमोट के अलावा कच्चा सरसो तेल मिला दीजिये. हरी मिर्च या लाल मिर्च पाउडर और प्याज के बारीक टुकड़े अपनी पसंद से डाल दें तो फिर आपकी शाम बन जायेगी. न अधिक तेल, न ज्यादा मसाला. न गले और सीने में जलन और न ही गैस की कोई समस्या. बच्चा खाएं या बुजुर्ग, किसी को भी आसानी से डाइजेस्ट हो जाए. इसे सुपाच्य भोजन की श्रेणी में रखा जाता है और इसका स्वाद? इसकी तो बात ही मत पूछिए तो बेहतर है. जिसने इसे चख लिया समझिए इसका मुरीद हो गया फिर उसे दूसरा कुछ नहीं सुहाता. महाराष्ट्रीयन भेल के बहुत पहले से हमारे बिहार का यह खास डिश ना केवल राज्य में बल्कि जहां जहां बिहारी गये उनकी पहचान में शामिल हो गया.
इस जायके में घुला हुआ है सामूहिकता का भाव
बात पहले भूंजा की. बालू में भूने चने, मकई, चावल आदि के दाने और पसंद के अनुसार नमक, तेल, प्याज, अदरख, लहसुन और कई दूसरी चीजें भी जिसे आप डालने चाहें, डालें और मस्त होकर खाएं. इसके जायके में सामूहिकता का भाव घुला हुआ है. लंबी यात्रा करनी हो या फिर दोस्तों के साथ समय व्यतीत करना हो. आपके सफर को आसान करने वाला आहार है भूंजा. खाते खाते कट जाये रस्ते जैसे. भुंजा को खाने का मजा तो ग्रुप में ही आता है. भीषण गप्पबाजी हो तो फिर कहना ही क्या? देश, राज्य के साथ ही विदेश पर चर्चा का अंतहीन दौर हो और उसमें भूंजा शामिल हो तो फिर चर्चा का मजा कई गुना बढ़ जाता है.
👌👌
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