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जमुई का महुअा लड्डू |
टेस्ट ऑफ बिहार4पटना
महुआ
फूलों से बनाया जाने वाला ‘महुआ लड्डू’ बिहार के दक्षिणी हिस्से में बसे
जमुई जिले का खास स्वाद है. महुआ के पेड़ों की बहुलता के कारण महुआ का
लड्डू इस इलाके में बनाया जाता है. सूखा भुना हुआ महुआ, गुड़, जीरा, सूखे
अदरक, लौंग, घी आदि को मिला कर इसे बनाया जाता है. इसमें कैरोटीन,
एस्कॉर्बिक एसिड, थाइमिन, रिबोफ्लाविन, नियासिन, फोलिक एसिड, बायोटिन और
इनॉसिटॉल खनिज पाए जाते हैं जो इसे पौष्टिक बनाता है. दरअसल महुआ के वृक्ष
का आदिवासी संस्कृति में अत्यधिक महत्व है. इसे इष्टदेव के समतुल्य मानकर
इसकी पूजा की जाती है. इससे आदिवासियों की दिनचर्या की बहुत सी चीजें जुड़ी
हुई हैं. महुआ फूल आम तौर पर आदिवासी के साथ अन्य ग्रामीण महिलाओं द्वारा
इकट्ठा किए जाते हैं और वे इन्हें स्थानीय बाजार में अपनी आजीविका की खातिर
कुछ पैसे कमाने के लिए बेचती हैं. जिसका इस्तेमाल शराब तैयार करने के लिए
भी किया जाता है. लेकिन इसका इस्तेमाल स्थानीय हलवाई और कारीगरों के द्वारा
इस बेहतरीन स्वाद को बनाने में किया जा रहा है.
कैसे बनता है महुए का लड्डू?महुआ
लड्डू को बनाना आसान नहीं है. महिलाएं बाज़ार से महुआ ख़रीदकर अच्छी तरह
धोकर सुखाती हैं. तब उसे घी में भूना और फिर पीसा जाता है. पहले
पिसाई-कुटाई का काम वे लोग ढेंकी (जाता) में करती थीं, लेकिन उससे लड्डू
खुरदुरा बनता था. बारीक़ पिसाई के लिए ग्राइंडर का इस्तेमाल किया जाता है.
दस किलो महुए में सफेद तिल, काग़ज़ी बादाम, मूंगफली के दाने, चावल और गुड़
एक-एक किलो के हिसाब से मिलाया जाता है. लड्डू बांधने के बाद उस पर नारियल
का चूरा लगाया जाता है. एक किलो लड्डू की क़ीमत दो सौ से तीन सौ रुपये है.
जिसमें तीस से चालीस के क़रीब लड्डू आते हैं. ये बूंदी वाला लड्डू नहीं है,
जो कुछ ही घंटों में तैयार हो जाता है. महुए का लड्डू बांधने से पहले सारी
प्रक्रिया पूरी करने में कम-से-कम पांच दिन का वक़्त लगता है और मेहनत के
कारण इसकी कीमत ज्यादा होती है.
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