रविशंकर उपाध्याय, पटना :
मथुरा के पेड़े का नाम तो अापने खूब सुना होगा, लेकिन क्या
आपने कभी नालंदा के एकंगरसराय प्रखंड के छोटे से कस्बे निश्चल गंज का पेड़ा
खाया है क्या? मावा या खोआ से बनी मिठाइयां बिहार में भी बहुत लोकप्रिय
हैं और पेड़ा मावे से बनने वाली मिठाई में पहले नंबर पर है. बिहार में नालंदा के निश्चलगंज के पेड़े इस कदर प्रसिद्ध है कि यह
शब्द मगही भाषा में अलंकार के रूप में प्रयुक्त होता है. ठीक उस तरह जैसे
पेड़ा मतलब निश्चलगंज का पेड़ा. पेड़े के लिए निश्चलगंज नालंदा में एक
ट्रेडमार्क है, जो पूरे प्रदेश में धीरे धीरे प्रसिद्ध हो रहा है. यदि आप नालंदा भ्रमण के लिए जाते हैं तो आपको बिहारशरीफ से एकंगरसराय
स्टेट हाइवे पर यह छोटा सा कस्बा मिलेगा, जहां पेड़ा खरीद सकते हैं. इस रूट
पर यात्रा के दौरान निश्चलगंज के बड़े-बड़े पेड़े व निर्यात क्वालिटी के
पेड़े आगंतुकों का ध्यान खूब आकर्षित करते हैं. ये बसों से लेकर छोटी कारों
में खूब बेचे जाते हैं. यहां से गुजरने वाले लोग यहां का पेड़ा बतौर संदेश
खरीदते हैं.
आप यदि यहां की प्रसिद्ध दुकान राकेश जी और सुनील जी के पेड़े का एक
टुकड़ा भी चखते हैं, तो कम से कम चार पेड़े से कम खाकर तो रह ही नहीं
पायेंगे. यहां 25 ग्राम से लेकर 25 किलो तक का पेड़ा बनता है. राकेश बताते हैं
कि यहां के पेड़े गाय और भैंस के दूध से ही बनाये जाते हैं. इसे बनाने के
लिए मावा और भूरा का उपयोग होता है. दानेदार मावा का ही इस कारण प्रयोग
होता है, ताकि पेड़े का स्वाद बरकरार रहे. पेड़े बनाते समय मावा को अधिक
से अधिक भूना जाता है. सुनील कहते हैं कि मावा को जितना अधिक भूनेंगे बने हुए पेड़ों की
लाइफ उतनी ही अधिक होगी. मावा भूनते समय बीच बीच में थोड़ा थोड़ा दूध या
घी डालते रहते हैं, जिससे इसे अधिक भूनना आसान हो जाता है. भूनते समय मावा
जलता नहीं और मावा का कलर हल्का ब्राउन हो जाता है. पेड़ा का स्वाद आपको
भुलाए नहीं भूलेगा. अभी यहां 180 रुपये प्रति किलो से लेकर 360 रुपये किलो
तक के पेड़े मिलते हैं.
पेड़े की प्रसिद्धि राज्य के सभी राजकीय मेले तक
इसकी प्रसिद्धि सभी राजकीय मेले से लेकर राज्यस्तरीय कार्यक्रमों तक
है. राजगीर महोत्सव हो या बौद्ध महोत्सव, पटना का सरस मेला हो, सूफी
महोत्सव या फिर बराबर का महोत्सव. सभी में निश्चलगंज के मेले की धमक दिखाई
देती है. हालांकि अभी तक इसकी प्रसिद्धि राज्य के बाहर नहीं हो पायी है इसके
कारण ब्रांडिंग नहीं हो पायी है. कारीगर बताते हैं कि उन्होंने अब इंटरनेट
का सहारा लिया है, जिससे देश के विभिन्न हिस्सों के साथ ही विदेशों में भी
बिक्री हो. वे अब फेसबुक और ट्वीटर पर भी जुड़ कर अपना प्रचार प्रसार कर
रहे हैं. सुनील और विजय ने बताया कि पटना के बड़े मॉल में वे इसके लिए
दुकानों की तलाश की जा रही है, ताकि प्रदेश के सभी हिस्से के लोग पेड़े का
लाभ ले सकें.
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http://epaper.prabhatkhabar.com/c/22775323
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