पटना. पटना-रांची हाइवे पर बिहारशरीफ और नवादा के बीच में एक छोटा सा कस्बा है, गिरियक. बिहारशरीफ से 19 किमी और नवादा से 17 किमी की दूरी पर स्थित यह प्रखंड मुख्यालय ऐतहासिक रूप से प्राचीन मगध साम्राज्य गिरिव्रज का हिस्सा रहा है, जिसका अपभ्रंश आज गिरियक हो गया है. वह गिरियक, जहां मगध के राजे रजवाड़े तफरीह करते हुए पंचाने नदी की कल कल बहती धारा देखने के लिए पहुंचते थे. बौद्धों के जमाने में यहां की पहाड़ी पर दुनिया का सबसे ऊंचा स्तूप भी बनाया गया था, जिसकी पहचान पांच छह साल पहले ही हुई है. इसके बाद यह कस्बा ऐतिहासिक रूप से इस वजह से याद किया जाता है क्योंकि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जन आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेज सरकार ने जिन दो जगहों पर पहली बार हेलीकॉप्टर से बम गिराया था उसमें इलाहाबाद के नैनी के बाद गिरियक भी शामिल था. उसी गिरियक की पहचान अब स्वादिष्ट रस भरी और रस मलाई के रूप में है. यहां की रसभरी इतनी खास है कि रोज हाइवे से गुजरने वाले स्वाद के शौकीन जरूर चखते हैं. आधा दर्जन मिठाई कारोबारी का फोकस रसमलाई और रसभरी पर है. 30 रुपये में दो रसभरी इतनी आनंदित कर देगी कि आप चार तो जरूर खाएंगे. आपके पास रसमलाई का भी ऑप्शन है जो 25 में दो आती है. यही नहीं यदि आप डायबिटीज की बीमारी से ग्रस्त हैं तो आपके लिए सुगर फ्री रसमलाई और रसभरी भी उपलब्ध है. केवल यह क्रमश: 40 और 30 रुपये में दो पीस आती है.
नहीं खरीदते हैं पैकेट वाला दूध, केवल गाय-भैंस के दूध का होता है प्रयोग
यहां के प्रसिद्ध आनंद मिष्ठान्न भंडार के ऑनर आनंद कुमार बताते हैं कि रसमलाई बनाने में कारीगर पैकेट के दूध का प्रयोग नहीं करते हैं. इसके लिए उन्होंने आसपास के विश्वसनीय दूध विक्रेताओं पर ही भरोसा करते हैं जो शुद्ध दूध मुहैया कराते हैं. उस दूध को वे केसर डालकर उबालते हैं. केसर के पीलापन आ जाने के बाद इसमें कम चीनी का प्रयोग करते हैं. इसके साथ ही जब छेना तैयार हो जाता है तो उसे ड्राइ फ्रूट डाल कर दोबार गर्म करते हैं. इसके कारण रसभरी काफी रसीली और स्वादिष्ट होती है जबकि रसमलाई में केसर और ड्राइफ्रूट का इस्तेमाल नहीं करते हैं बाकी यही तरीका होता है रस मलाई बनाने का. पूरे कस्बे में राेज लगभग 1000 पीस रसभरी और रसमलाई बिकती है जो कई बार बढ़कर 2000 भी हो जाता है.
राजगीर महोत्सव की शान बन चुका है रसभरी
यहां की रसभरी राजगीर महोत्सव की शान बन चुकी है. 2014 में तत्कालीन डीएम पलका साहनी ने इसे बेस्ट डिश ऑफ बिहार घोषित किया था. इसके विक्रेताओं को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया गया था. राजगीर महोत्सव के अलावे नालंदा सृजन दिवस और पावापुरी मेडिकल कॉलेज में आयोजित स्वीट डिश फेस्टिवल में भी रसभरी का जलवा दिख चुका है. रसमलाई के विक्रेता रमेश कुमार कहते हैं कि अब हम इसका प्रसार राजधानी तक करने की रणनीति बना रहे हैं ताकि पूरा प्रदेश इसका स्वाद चख सके जो अभी केवल रांची-पटना हाइवे से गुजरने वाले लोगों को ही मुहैया हाे रही है.
http://epaper.prabhatkhabar.com/c/22775134
नहीं खरीदते हैं पैकेट वाला दूध, केवल गाय-भैंस के दूध का होता है प्रयोग
यहां के प्रसिद्ध आनंद मिष्ठान्न भंडार के ऑनर आनंद कुमार बताते हैं कि रसमलाई बनाने में कारीगर पैकेट के दूध का प्रयोग नहीं करते हैं. इसके लिए उन्होंने आसपास के विश्वसनीय दूध विक्रेताओं पर ही भरोसा करते हैं जो शुद्ध दूध मुहैया कराते हैं. उस दूध को वे केसर डालकर उबालते हैं. केसर के पीलापन आ जाने के बाद इसमें कम चीनी का प्रयोग करते हैं. इसके साथ ही जब छेना तैयार हो जाता है तो उसे ड्राइ फ्रूट डाल कर दोबार गर्म करते हैं. इसके कारण रसभरी काफी रसीली और स्वादिष्ट होती है जबकि रसमलाई में केसर और ड्राइफ्रूट का इस्तेमाल नहीं करते हैं बाकी यही तरीका होता है रस मलाई बनाने का. पूरे कस्बे में राेज लगभग 1000 पीस रसभरी और रसमलाई बिकती है जो कई बार बढ़कर 2000 भी हो जाता है.
राजगीर महोत्सव की शान बन चुका है रसभरी
यहां की रसभरी राजगीर महोत्सव की शान बन चुकी है. 2014 में तत्कालीन डीएम पलका साहनी ने इसे बेस्ट डिश ऑफ बिहार घोषित किया था. इसके विक्रेताओं को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया गया था. राजगीर महोत्सव के अलावे नालंदा सृजन दिवस और पावापुरी मेडिकल कॉलेज में आयोजित स्वीट डिश फेस्टिवल में भी रसभरी का जलवा दिख चुका है. रसमलाई के विक्रेता रमेश कुमार कहते हैं कि अब हम इसका प्रसार राजधानी तक करने की रणनीति बना रहे हैं ताकि पूरा प्रदेश इसका स्वाद चख सके जो अभी केवल रांची-पटना हाइवे से गुजरने वाले लोगों को ही मुहैया हाे रही है.
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