-अभी तक केवल मधुबनी पेंटिंग, भागलपुरी सिल्क, सुजनी और खतवा कला को मिला है जीआइ टैग
-अब बिहार की पहचान बन चुके इन तीनों मिठाईयों को जीआई टैग दिलाने की तैयारी
पटना.
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सिलाव का खाजा |
अब
बिहार की पहचान बन चुके तीन प्रमुख मिठाईयां ग्लोबल ब्रांड बनेंगे. नालंदा
के सिलाव का खाजा, पटना के मनेर का लड्डू और गया के तिलकुट को जीआई
टैग यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग दिलाने की तैयारी चल रही है. बिहार
सरकार का कला व संस्कृति विभाग इन तीनों मिठाईयों को जीआई टैग दिलाने के
लिए प्रक्रिया शुरू कर चुका है. इसके लिए बिहार विरासत विकास समिति को
जिम्मेवारी दी गयी है. विरासत विकास समिति ने इसके लिए कागजी प्रक्रिया
शुरू कर दी है. कोलकाता में जीआइआर के दिल्ली और चेन्नई के अधिकारियों से
वार्ता भी हो चुकी है. अब कागजी प्रक्रिया को पूरी कर चेन्नई स्थित हेड
ऑफिस को भेजने की तैयारी चल रही है. इसके तहत जीआई टैग के लिए सुप्रीम
कोर्ट में एफिडेविट प्रस्तुत किया जायेगा. वहां से आपत्ति मांगी जायेगी और
यदि आपत्ति नहीं आयी तो फिर इन तीनों मिठाईयों को जीआई टैग मिल जायेगा.
जीआई टैग के क्षेत्र में बिहार के मिठाईयों की यह पहली औपचारिक इंट्री
होगी. अभी तक बिहार के हस्तकरघा उद्योगों को ही जीआई टैग मिला है जिसमें
मधुबनी पेंटिंग, भागलपुरी सिल्क, सुजनी और खतवा कला जीआइ टैग से युक्त
उत्पाद हैं.
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मनेर के लड्डू |
दार्जिलिंग चाय को सबसे पहले मिला था जीआई टैग
आसाम
के दार्जिलिंग की मशहूर चाय
भारत में पहला जीआई टैग उत्पाद 2004-05 में बना था. उसके बाद से मई 2017
तक इस
सूची में कुल 295 उत्पाद शामिल हो गये हैं. जिसमें बिहार के चार हस्तकरघा
उत्पाद शामिल हैं. भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य के
रूप में भौगोलिक संकेतों का माल (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1 999 में
लागू किया था. यह कानून 15 सितंबर 2003 से प्रभावी है. जीआई को अनु
च्छेद 22
(1) के तहत परिभाषित किया गया है. चेन्नई स्थित भौगोलिक उपदर्शन रजिस्ट्री
(जीआइआर) जीआई टैग प्रदान करती है.
क्या है जीआई टैग?
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गया के तिलकुट |
जीआई यानी जियोग्राफिकल
इंडिकेशन किसी उत्पाद की पहचान बताने वाली ग्लोबल टैगिंग होती है. जो इसके
अधिकृत मालिक या प्रयोगकर्ता को
जीआई के टैग लगाने का कानूनी अधिकार प्रदान करता है. गैर-अधिकृत व्यक्ति
इसका
प्रयोग नहीं कर सकता. जीआई टैग को ‘विश्व व्यापार संगठन’ से भी
संरक्षण मिलता है. हर उत्पाद की विशिष्ट पहचान में उसका उद्भव, उसकी
गुणवत्ता, प्रतिष्ठा तथा अन्य विशेषताएं शामिल होती है. जीआई दो प्रकार के
होते हैं. पहले प्रकार में वे भौगोलिक नाम हैं, जो उत्पाद के उद्भव के
स्थान का नाम बताते हैं जैसे दार्जिलिंग चाय आदि. दूसरे गैर-भौगोलिक
पारंपरिक नाम, जो यह बताते हैं कि उत्पाद किसी एक क्षेत्र विशेष से संबद्ध
है. जैसे- अल्फांसो, बासमती आदि. अधिकृत उपयोगकर्ताओं के अलावा किसी भी
अन्य
को लोकप्रिय उत्पाद नाम का उपयोग करने की अनुमति नहीं मिलती है.
''सबसे पहले सिलाव के खाजा को मिलेगा जीआइ टैग''
सबसे पहले सिलाव का खाजा
जीआई टैग से जुड़ेगा. इसके बाद मनेर के लड्डू सहित गया के तिलकुट जैसे
व्यंजनों की बारी आयेगी. जीआइआर के दिल्ली और चेन्नई के अधिकारियों के साथ
कोलकाता में हुई बैठक में इसपर औपचारिक सहमति हो गयी है. चेन्नई स्थित हेड
ऑफिस को सभी जरूरी कागजात मुहैया कराने के लिए हम सब की तैयारी चल रही है.
इसके बाद हमें जीआई टैग मिल जाएगा.
-विजय कुमार चौधरी, एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर, बिहार विरासत विकास समिति
http://epaper.prabhatkhabar.com/c/23072149
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