Saturday, May 19, 2018

महावीर मंदिर के नैवेद्यम में स्वाद के साथ श्रद्धा-सेवा की मिठास

टेस्ट ऑफ बिहार, पटना.
पटना के प्रसिद्ध महावीर मंदिर के प्रसाद नैवेद्यम का स्वाद शायद ही किसी ने नहीं चखा हो. इस स्वाद में श्रद्धा और सेवा की ऐसी मिठास है जिसे पूरी दुनिया जानती है. यह ना केवल प्रसाद के तौर पर अपनी श्रद्धा प्रदर्शित करने का जरिया है बल्कि समाज सेवा का भी एक बेहतर माध्यम है. क्योंकि नैवेद्यम से मिली राशि को कैंसर मरीजों पर खर्च किया जाता है. महावीर मंदिर न्यास की ओर से लड्डू से प्राप्त राशि से लगभग 500 कैंसर मरीजों की मदद की जाती है. कैंसर मरीजों को दस हजार से 15 हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है. इस राशि से अस्पताल में भर्ती सभी मरीजों के लिए तीनों समय नि: शुल्क भोजन की व्यवस्था की जाती है. इसके अलावा मरीजों के अटेंडेंट को लिए 30 रुपये की न्यूनतम दर से भोजन उपलब्ध कराया जाता है. सौ रुपये प्रति यूनिट की दर से ब्लड कैंसर मरीजों को उपलब्ध कराया जाता है. यानी आप जानिये कि आपकी श्रद्धा से आये रुपये का कैसे सकारात्मक इस्तेमाल किया जाता है.
ऐसे बनाया जाता है नैवेद्यम लड्डू
नैवेद्यम लड्डू की शुद्धता का विशेष ख्याल रखते हुए मक्खन से घी बनाया जाता है और उस घी में लड्डू बनाया जाता है. तिरूपति के लड्डू बनाने में जिस घी का इस्तेमाल किया जाता है उसकी आपूर्ति सीधे कर्नाटक मिल्क को-आॅपरेटिव फेडरेशन से किया जाता है. अभी 250 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से लड्डू बेचे जा रहे हैं. महावीर मंदिर के साथ ही नैवेद्यम लड्डू की 500 ग्राम, 250 और 200 ग्राम के पैकिंग में उपलब्ध है. कुछ दिनों के बाद गाय के शुद्ध घी से निर्मित लड्डू उपलब्ध कराने की भी योजना है.

Sunday, May 13, 2018

आप हो जाएंगे लट्टू, जब खाएंगे जमुई का महुअा लड्डू

जमुई का महुअा लड्डू
टेस्ट ऑफ बिहार4पटना
महुआ फूलों से बनाया जाने वाला ‘महुआ लड्डू’ बिहार के दक्षिणी हिस्से में बसे जमुई जिले का खास स्वाद है. महुआ के पेड़ों की बहुलता के कारण महुआ का लड्डू इस इलाके में बनाया जाता है. सूखा भुना हुआ महुआ, गुड़, जीरा, सूखे अदरक, लौंग, घी आदि को मिला कर इसे बनाया जाता है. इसमें कैरोटीन, एस्कॉर्बिक एसिड, थाइमिन, रिबोफ्लाविन, नियासिन, फोलिक एसिड, बायोटिन और इनॉसिटॉल खनिज पाए जाते हैं जो इसे पौष्टिक बनाता है. दरअसल महुआ के वृक्ष का आदिवासी संस्कृति में अत्यधिक महत्व है. इसे इष्टदेव के समतुल्य मानकर इसकी पूजा की जाती है. इससे आदिवासियों की दिनचर्या की बहुत सी चीजें जुड़ी हुई हैं. महुआ फूल आम तौर पर आदिवासी के साथ अन्य ग्रामीण महिलाओं द्वारा इकट्ठा किए जाते हैं और वे इन्हें स्थानीय बाजार में अपनी आजीविका की खातिर कुछ पैसे कमाने के लिए बेचती हैं. जिसका इस्तेमाल शराब तैयार करने के लिए भी किया जाता है. लेकिन इसका इस्तेमाल स्थानीय हलवाई और कारीगरों के द्वारा इस बेहतरीन स्वाद को बनाने में किया जा रहा है.
कैसे बनता है महुए का लड्डू?
महुआ लड्डू को बनाना आसान नहीं है. महिलाएं बाज़ार से महुआ ख़रीदकर अच्छी तरह धोकर सुखाती हैं. तब उसे घी में भूना और फिर पीसा जाता है. पहले पिसाई-कुटाई का काम वे लोग ढेंकी (जाता) में करती थीं, लेकिन उससे लड्डू खुरदुरा बनता था. बारीक़ पिसाई के लिए ग्राइंडर का इस्तेमाल किया जाता है. दस किलो महुए में सफेद तिल, काग़ज़ी बादाम, मूंगफली के दाने, चावल और गुड़ एक-एक किलो के हिसाब से मिलाया जाता है. लड्डू बांधने के बाद उस पर नारियल का चूरा लगाया जाता है. एक किलो लड्डू की क़ीमत दो सौ से तीन सौ रुपये है. जिसमें तीस से चालीस के क़रीब लड्डू आते हैं. ये बूंदी वाला लड्डू नहीं है, जो कुछ ही घंटों में तैयार हो जाता है. महुए का लड्डू बांधने से पहले सारी प्रक्रिया पूरी करने में कम-से-कम पांच दिन का वक़्त लगता है और मेहनत के कारण इसकी कीमत ज्यादा होती है.