Monday, September 24, 2018

खीर की बिहारी पहचान है रसिया

 
टेस्ट ऑफ बिहार
बिहार में खाने के बाद मीठे में सबसे ज्यादा पसंद वाला व्यंजन खीर है. खीर ऐसा मिष्ठान्न है जिसे चावल को दूध में पकाकर बनाया जाता है. खीर दूध, चीनी और चावल से बनती है. इसमें सूखे मेवे डालते हैं. देश के अलग अलग राज्यों में खीर को अलग-अलग नाम से जाना जाता है, लेकिन बनाने की विधि कमोबेश एक होती है. बिहार में खीर के साथ जो प्रयोग हुआ है वह चीनी के जगह पर गुड़ या छोवा डालकर बनाया जाने वाला रसिया. रसिया दूध, चावल, घी, गुड़, इलायची, मेवे और केसर डालकर पकाया जाता है. इतिहासकारों के अनुसार खीर का पहला उल्लेख 400 ईसा पूर्व के जैन और बौद्ध ग्रंथों में मिलता है. आयुर्वेद में तो बाकायदा इसे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी बताया गया है. खीर शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के क्षीर से हुई जिसका अर्थ ही दूध होता है. बिहार की यह रसिया पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रसखीर के नाम से जाना जाता हैं. बरसात या सर्दियों में गुड़ की खीर को खाने से इसका स्वाद और भी बढ़ जाता हैं. इस खीर में चीनी की जगह गुड़ डाल देने से खीर का स्वाद बदल जाता है. रसिया या गुड़ की खीर का स्वाद इतना जायकेदार होता हैं, कि घर में हर किसी को इससे प्यार हो जाए. गुड़ की खीर की रैसिपी में दूध को उबाल कर और चावल डाल कर बनायी जाती हैं.


ऐसे बनायी जाती है रसिया 
आधा कप चावल को अच्छे से साफ करके धोकर 2 घंटे के लिए पानी में भिगो कर रख दीजिए. इसके बाद चावल में से अतिरिक्त पानी निकाल कर चावल ले लीजिए. सभी काजू को 5-6 छोटे टुकड़ों में काट लीजिए. बादाम को बारीक छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर तैयार कर लीजिए. इलायची को छील कर इसके बीजों का पाउडर बना लीजिए. अब किसी बर्तन में दूध डाल कर गैस पर गरम करने के लिए रख दीजिए. दूध में उबाल आने पर चावलों को दूध में डाल कर मिला दीजिए. दूध को चमचे से चलायें और खीर में उबाल आने के बाद गैस को धीमी रखें, खीर को हर 1-2 मिनट में चलाते रहें क्योंकि खीर तले में बहुत जल्दी जलने लग जाती है. किसी एक बर्तन में गुड़ और अाधा कप पानी को डालकर, गैस पर गर्म करिए. जब गुड़ पूरी तरह पानी में घुल जाए, तब गैस को बंद कर दीजिए. चावल मुलायम हो जाए तब खीर में काजू, किशमिश और बादाम डाल दीजिए. चावल दूध में अच्छे से मिल जाने पर इसमें इलायची पाउडर डाल दीजिए. अब गैस को बंद कर दीजिए. आपकी खीर तैयार हैं. खीर को ठंडा होने के लिए रख दीजिए.

Tuesday, September 4, 2018

किशनगंज-कटिहार की चाय पीयेंगे तो कहेंगे वाह बिहार!

टेस्ट ऑफ बिहार4पटना.
असम और दार्जिलिंग की चाय के बारे में तो सब जानते हैं लेकिन किशनगंज और कटिहार ब्रांड बिहार चाय है. बिहार में चाय की खेती सर्वप्रथम 1982 में किशनगंज जिले में आधा हेक्टेयर भूमि में शुरू की गयी थी अभी तेज विकास और विस्तार के चलते 50 एकड़ जमीन पर चाय की खेती हो रही है. अभी किशनगंज-कटिहार में लगभग 10 चाय रिफाइनिंग मशीन कार्यरत हैं. यहां से भारत की कुल चाय का 2 फीसदी उत्पादन होता है. हालांकि एक दिलचस्प कहानी यह है कि वर्ष 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा किशनगंज अनुमंडल के करणदिघी से सोनापुर (अब बंगाल) के छह प्रखंड काटकर यदि पश्चिम बंगाल को न दे दिये जाते तो किशनगंज के माध्यम से बिहार 1956-57 में चाय उत्पादक राज्य हो जाता.
कभी किशनगंज का हिस्सा रहा सोनापुर आज पश्चिम बंगाल में चाय व अनानास उत्पादन में कमाऊ पूत बना है. बिहार के चेरापूंजी के रूप में विख्यात किशनगंज-कटिहार में चाय की खेती के लिए मिट्टी व मौसम माकूल है. अधिक बारिश चाय की खेती के लिए मुफीद मानी जाती है. ठाकुरगंज, पोठिया व किशनगंज प्रखंड में लगभग 40 हजार एकड़ में चाय की खेती हो रही है. यहां की चाय दार्जलिंग जिले की चाय से बखूबी ठक्कर ले रही है. निजी टी प्रोसेसिंग प्लांट में बनी चाय बिहार के अन्य जिले सहित दूसरे प्रदेशों में भी खूब बिक रही है.
दिलचस्प है चाय की इतिहास
चाय के इतिहास के साथ बड़ी ही दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है. बात चार हजार साल पुरानी है. चीन का एक बादशाह हुआ करता था, जिसका नाम शिन नोंग था. एक बार वह शिकार पर गया और थककर पेड़ के नीचे आराम कर रहा था. पास ही उसके लिए पानी उबल रहा था. तभी पास ही के पड़े की कुछ पत्तियां उसमें आ गिरीं. पानी उबला, बादशाह ने पीया और उसकी सारी थकान दूर हो गई और वह अपने साथ जाते हुए उस पेड़ की कुछ पत्तियां ले गया. इस तरह एक ऐसे पेय पदार्थ ने हमारे जीवन में कदम रखा, जिसने हमें कुछ पल सुकून से बिताने और बतियाने के अलावा सेहतमंद होने की दिशा में बढ़ाने के भी दिए. खास यह कि आखिर वह क्या तत्व था जिसने बादशाह नोंग की सुस्ती दूर भगा दी. चाय में थियानिन होता है. जिससे दिमाग में अलर्टनेस आती है और सुकून मिलता है. इससे ताजगी का एहसास होता है.

बिहार की मिठास को पहचान देती है परवल की मिठाई

-खांटी बिहारी टेस्ट की ब्रांड एंबेसडर है परवल की मिठाई, औषधीय गुणों से भी है भरपूर  
पटना.
बिहार केवल परवल के उत्पादन में ही नंबर वन राज्य नहीं है बल्कि परवल के सबसे ज्यादा व्यंजन बनाने में भी बिहार का कोई सानी नहीं है. परवल अच्छी तरह से साधारणतया गर्म और आर्द्र जलवायु के अन्दर पनपती है, इस कारण बिहार की धरती परवल की खेती के बिल्कुल मुफीद है. परवल की लता जमीन पर पसरती है और इसकी खेती नदियों के किनारे खूब की जाती है. इस कारण बिहार में परवल की भुजिया, सब्जी से लेकर मिठाई तक खूब बनायी जाती है. कोई भी पर्व हो, त्‍योहार हो या उत्सव, यह मिठाई हर वक्‍त मौजूद रहेगी. इसका मीठा और क्रंची स्‍वाद सभी को खूब भाता है. इसमें विटामिन-ए, विटामिन-बी 1, विटामिन बी-2 और विटामिन-सी के अलावा कैल्शियम भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो कैलोरी की मात्रा कम कर कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करता है. डॉक्टरों के अनुसार परवल में मैग्नीशियम, पोटैशियम, फास्फोरस भी भरपूर मात्रा में होता है. आयुर्वेद के अनुसार परवल में त्वचा के रोग, बुखार और कब्ज की समस्याओं को खत्म करने वाले औषधीय गुण होते हैं. परवल में जो बीजों में कब्ज को दूर करने के गुण होते हैं इसके अलावा ये बीज रक्त में शर्करा और फैट्स को नियंत्रित करने का कार्य भी करते हैं. पेशाब संबंधी रोगों और मधुमेह की समस्या के लिए भी परवल बेहद लाभदायक है. परवल में भरपूर मात्रा में फाइबर्स होते हैं, जो क्रि‍या को बेहतर कर, पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है. आयुर्वेद के अनुसार गैस की समस्या होने पर परवल को इलाज के तौर पर अपनाया जाता है. 
ऐसे बनायी जाती है परवल की मिठाई 
इस मिठाई को केवल एक तार की चाशनी से बनायी जाती है, जिससे ठंडी होने पर मिठाई में चाशनी जमे नहीं. परवल (छिले और बीच से चीरा लगाये हुए), मावा, शक्‍कर, हरी इलायची, बादाम, पिस्‍ता, मिल्‍क पावडर, सोडा बाइ कार्बोनेट चुटकी भर, केसर जमा कर लें और सबसे पहले स्‍टफिंग बनाएंगे, जिसके लिये खोए को एक पैन में रोस्‍ट करने के लिये रखेंगे. फिर उसमें आधा कप शक्‍कर मिलायें और आंच चालू रखेंगे. एक दूसरे पैन में बची हुई शक्‍कर और एक कप मिक्‍स कर के पतली चाशनी तैयार करेंगे. खोए में हरी इलायची मिला कर मिक्‍स करेंगे. अब खोए के नीचे आंच बंद कर के उसे उतार लें और उसमें बारीक कटे बादाम और पिस्‍ते मिलाएं. उसके बाद इसमें मिल्‍क पावडर भी मिलाएं. फिर इस मिश्रण को एक प्‍लेट पर निकालें और ठंडा होने के लिये रख दें. अब हम परवलों को उबालने की तैयारी करेंगे. इसके लिये एक गहरे पैन या भगौने में पानी भर लेंगे और उसमें सोडा बाइर्कोनेट मिक्‍स करेंगे. जब पानी उबलने लगेगा तब उसमें परवल डाल कर 2-3 मिनट तक पकाएंगे और गैस बंद कर देंगे. फिर परवलों को निकाल कर उसमें से पानी निथार लें. फिर इन परवलों को एक तार वाली चाशनी में लगभग 1 घंटे तक ढंक कर रखें, जिससे वह पूरी तरह से मीठे हो जाएं. अब परवल का रंग बदल जायेगा. उसके बाद परवल निकालें और उसमें से चाशनी को निथार लें. फिर उसमें खोए का मिश्रण भरें और ऊपर से केसर के धागे लगा कर सजाएं. इस मिठाई को फ्रिज में रख कर एक हफ्ते तक बड़े ही आराम से खाया जा सकता है. 

बेहतरीन स्वाद की धनी है बेलसंड की छेना जलेबी

 
टेस्ट ऑफ बिहार®पटना.
आपने शक्कर की जलेबी खाई होगी, कभी गुड़ के शीरे में बनी हुई जलेबी भी चखी होगी लेकिन क्या कभी छेना वाली जलेबी खायी है? स्वाद में लजीज और सेहत के लिए गुणकारी यह बेमिसाल स्वाद आपको बिहार के सीतामढ़ी जिले के बेलसंड इलाके में विशेष तौर पर मिलेगी. इस इलाके में छेना जलेबी के स्पेशलिस्ट कारीगर भी मिलते हैं और उसके कद्रदान भी. सीतामढ़ी का बेलसंड वैसे तो एक ऐसा कस्बा है जो समुद्र तल से 65 मीटर ऊपर होने के बावजूद बरसात आते ही बाढ़ से प्रभावित हो जाता है. 53 गांव और 10 पंचायत वाले इस प्रखंड में उड़ीसा के मूल का एक टेस्ट काफी प्रसिद्ध है. यह टेस्ट है छेना जलेबी की. कारीगर शंकर कहते हैं कि शुद्ध देसी तरीके से चाशनी में डुबोयी जलेबी का स्वाद निराला होता है. यहां छेना जलेबी को लोग शुद्धता और स्वाद के साथ ही सेहत के लिए बतौर संदेश दूर दूर भेजते हैं.
ऐसे बनती है छेना जलेबी:
चीनी और पानी मिलाकर एक तार की चाशनी बना लें, चाशनी जब तैयार होने वाली हो तब उसमें गुलाब जल और केसर मिला दें. छेना छान कर पानी निकाल दें और फिर उसमें सभी सामग्री मिलाकर जलेबी का बैटर तैयार कर ले. बटर को एक जिप लौक बैग में डालकर आगे से थोडा काट कर छेद बना ले. एक कड़ाई में घी गर्म करें और जलेबी छान कर तैयार चाशनी में एक मिनट के लिए रख कर निकाल ले, और बारीक कटे हुए पिस्ता से सजा कर सर्व करें. जलेबी की धीमी आंच पर तलें.
https://www.prabhatkhabar.com/news/food-and-drink/bihar-sitamadhi-cheena-jalebi/1190442.html

Monday, September 3, 2018

लौंग लता में है बिहारी स्वाद का पता

टेस्ट ऑफ बिहार®पटना. 
अगर आप बिहार के किसी भी शहर में घूमने निकलेंगे तो आप को यहां हलवाई की दुकान में लड्डू और पेड़े के साथ जो मिठाई सबसे ज्यादा बनती हुई दिखाई देगी वह है लौंग-लता. लौंग लता वैसे तो बंगाली मूल की मिठाई है लेकिन यह बिहार की मशहूर मिठाईयों में से एक है जिसका स्वाद आपको शहर दर शहर चखने को मिलता है. मैदे में मावा, ड्राई फ्रूट्स भरा हुए और लबालब चाशनी में डूबा हुआ लौंग लता. आखिर किसका मन नहीं ललचा जाये. इसे एक बार चखने के बाद आप इसका स्वाद भूल नहीं पाते हैं और अगर कहीं आप मीठे के शौकीन हैं तो इसे खाने के लिए बार-बार दिल मचलता रहेगा, यह भी तय है.
ऐसे बनता है लौंगलता
लौंग लता बनाना बहुत ही आसान है. आप आधा कटोरी कटा हुए मेवा के साथ मैदा, खोया, नारियल पाउडर के साथ आधा छोटा चम्मच खसखस, 5-6 साबुत लौंग, 1-2 इलायची, छोटा चम्मच गुलाब जल, 200 ग्राम घी और 100 ग्राम चीनी लें. छने हुए मैदे में एक छोटा चम्मच घी का मोयन डालकर कम पानी से मुलायम गूंद लें. एक पैन में खोया डालकर धीमी आंच में हल्का सुनहरा होने तक भून लें फिर इसमें नारियल, इलायची पाउडर, खसखस और मेवे डालकर मिला लें. अब एक दूसरे पैन में चीनी में एक कप पानी डालकर एक तार की चाशनी बनाने के लिए रखें. जब चाशनी तैयार हो जाए तो इसमें गुलाब जल मिलाकर आंच बंद कर दें. अब आटे की 5-7 छोटी लोइयां लेकर रोटी बेल लें फिर एक रोटी में एक बड़ा चम्मच भरावन डालकर चारों तरफ से बंद कर के ऊपर से लौंग लगा दें. इसी तरीके से सारे लौंग लता तैयार कर लें. एक कड़ाही में घी डालकर मीडियम आंच पर गर्म होने के लिए रखें। जब घी गर्म हो जाए तो इसमें लौंग लता डालकर सुनहरा होने तक फ्राई कर लें. इन लौंग लता को 15 से 20 मिनट के लिए चाशनी में डालकर रखें. तैयार लौंग लता को मेहमानों को परोसें.