Saturday, April 28, 2018

'आम' नहीं सबसे खास है भागलपुर का 'जर्दालु आम'

पटना.
बिहार के भागलपुर में होने वाला जर्दालू आम 'आम' से लेकर 'खास' तक हर किसी को लुभाता है. इसका स्वाद ही कुछ ऐसा है कि एक बार जो इसे चख ले वह इसका दीवाना हो जाता है. ऐसा माना जाता है कि भागलपुर में जर्दालु आम को सबसे पहले अली खान बहादुर ने इस क्षेत्र में लगाया था. जर्दालु आम की विशेषता है कि इसका फल हल्के पीले रंग का होता है तथा यह विशेष सुगंध के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध है. अपने भीतर खास तरह की फ्लेवर और मिठास समेटे यह आम केंद और राज्य के बीच राजनैतिक संबंध में भी मिठास घोलने का काम कर रहा है. बिहार की नीतीश सरकार 'ब्रैंड बिहार' को प्रोमोट करने के लिए जर्दालू आम का इस्तेमाल कर रही है. इस कारण पिछले कई दशकों से यह आम खास होकर आम जनता के साथ राजनीतिज्ञों के लिए भी खास रहा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर वर्ष 2006 से भागलपुर का जर्दालु सौगात के रूप में देश के महामहिम राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, कृषि मंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, दिल्ली के मुख्यमंत्री सहित अति विशिष्ट अतिथियों को भेजा जाता रहा है. बिहार के जर्दालू आम को अंतरराष्ट्रीय स्तर की पत्रिका ज्योग्राफिकल इंडिकेशन जॉर्नल में जगह भी मिल गयी है. जर्नल में इसे राज्य के बौद्धिक संपदा अधिकार शीर्ष से जगह मिली है. भागलपुर के जर्दालु आम उत्पादक संघ के आवेदन को स्वीकृत करते हुए ज्योग्राफिकल इंडिकेशन जर्नल ने स्थान दिया है.
आम उत्पादन के लिए भागलपुर की मिट्टी है बेहतरीन
दरअसल आम उत्पादन के लिए भागलपुर एरिया की मिट्टी बेहतरीन है. इसलिए यहां पैदा होने वाला जर्दालू का स्वाद भी लजीज होता है. इस आम में एक विशेष तरह की सुगंध व स्वाद होता है. दरअसल ब्रैंड प्रमोशन की कमी के चलते यह लजीज आम अपने एरिया तक ही सिमट कर रह गया था. अपने खास गुणों और स्वाद के बाद यह आम यूपी के दशहरी की तरह पूरी दुनिया के सामने आ पाया है.

Thursday, April 26, 2018

हिन्दुस्तानी तहजीब की बिहारी पहचान है ''मगही पान''

 पटना.
लंबे अरसे से पान हिंदुस्तानी तहज़ीब का एक अहम हिस्सा रहा है. तहजीब से इतर धार्मिक रीति-रिवाजों में भी इसकी गहरी मान्यता है. इस देश के एक बड़े हिस्से में पान खाना और खिलाना समाजिक राब्ते और रिश्तों की गहराई बढ़ाने, मेहमान-नवाज़ी की रस्म का रंग चटख लाल करने का अहम ज़रिया है. इस लाली का रंग हमारे बिहार के मगही पान में दिखाई देता है. बिहार की कुछ बेहद नामचीन पहचानों में एक पहचान यहां का मशहूर मगही पान भी है.क्योंकि मगही पान सर्वोत्तम है. मगही मागधी का अपप्रंश है जो मगध में रहने वाले और यहां पाये जाने वाले के लिए प्रयोग में आता है. जो अब मगही हो गया है. मगही भाषा, मगही लोग और मगही पान.
मगध के तीन जिलों में पान की खेती होती है
मगध के मुख्यत: तीन जिलों में पान की खेती होती है. ये जिले हैं नवादा, नालंदा तथा औरंगाबाद. कोमलता एवं लाजवाब स्वाद के लिए पूरे देश में मगही पान प्रसिद्ध है. इसके पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं और आकार दिल की तरह होता है. स्वाद ऐसा जो मुंह में घुल जाये. इसी कारण मार्च महीने में जिन तीन बिहारी स्वाद को ग्लोबल पहचान मिली है. उसमें मगही पान भी शामिल है, जिसको खांटी बिहारी पहचान मिल गयी है़ ज्योग्राफिकल इंडिकेशन जर्नल ने बिहार के मगही पान स्वाद को बौद्धिक संपदा अधिकार के तहत जीआइ टैग दिया है़ मगही पान के लिए उत्पादक कल्याण समिति देवरी (नवादा) ने आवेदन किया था.
कई औषधीय गुणों का स्वामी है पान
भारतीय संस्कृति में पान को हर तरह से शुभ माना जाता है. धर्म, संस्कार, आध्यात्मिक एवं तांत्रिक क्रियाओं में भी पान का इस्तेमाल सदियों से किया जाता रहा है. इसके अलावा पान का रोगों को दूर भगाने में भी बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जाता है. खाना खाने के बाद और मुंह का जायका बनाये रखने के लिए पान बहुत ही कारगर है. कई बीमारियों के उपचार में पान का इस्तेमाल लाभप्रद माना जाता है.


Saturday, April 7, 2018

स्वाद और सुगंध की धनी भागलपुरी कतरनी

 पटना
कतरनी चावल हो कतरनी का चूड़ा. इसके स्वाद और खुशबू को हर बिहारी अच्छी तरह से समझता है. स्वाद और सुगंध के धनी इस कतरनी को अब अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल गयी है. भागलपुर के कतरनी धान को जियोग्राफिकल इंडिकेशन मिल गया है और इसी के साथ अब भागलपुरी कतरनी की खुशबू राष्ट्रीय स्तर पर फैलेगी. कतरनी के दाने छोटे और सुगंधित होते हैं. पत्तों और डंठल से भी विशेष तरह की खुशबू आती है. यह धान 155-160 दिनों में पककर तैयार होता है. इसके बाद इसकी खुशबू पूरी दुनिया में बिखरती है. ना केवल कतरनी का निर्यात किया जाता है बल्कि कतरनी को बिहारी स्वाद का संदेशवाहक भी माना जाता है.

अंग क्षेत्र की सौगात है कतरनी धान
कतरनी धान अंग क्षेत्र का सबसे पसंदीदा धान है. भले ही इसके उत्पादन को लेकर नये नये प्रयोग चल रहे हैं पर आज भी देश-विदेश में रहने वाले लोग जब वापस आते हैं तो भागलपुर से कतरनी चावल और चूड़ा जरूर ले जाते हैं. दूरदराज में रहने वाले परिजन भी त्योहार व महत्वपूर्ण अवसरों पर अपने संगे-संबंधियों से उपहार के रूप में कतरनी चूड़ा व चावल की मांग करते हैं. इससे यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि भागलपुरी कतरनी की सुंगध व स्वाद के प्रति लोगों में कितना आत्मीय लगाव है.

नेहरू जी को भेंट किया गया था कतरनी चूड़ा
1952 में जब प्रथम प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरू भागलपुर आये थे तो उन्हें तत्कालीन डीएम ने जगदीशपुर प्रखंड के एक किसान के घर ढेकी में तैयार किया गया कतरनी चूड़ा भेंट किया था. जिससे इस उत्पाद की अहमियत अतीत के आइने में भी झलकती है. इसी के साथ देश के नामचीन नेता और शख्सीयत हैं जो बिहार के इस स्वाद के खासे दीवाने रहे हैं.

Sunday, April 1, 2018

तीन बेमिसाल बिहारी स्वाद को पहली बार मिली ग्लोबल पहचान

मगही पान, कतरनी धान और जर्दालू आम को मिला जीआई टैग 
-बिहार की पहचान बना आम, धान और पान, भारत सरकार से मिला टैग
-अब तक केवल हस्तकरघा उत्पाद को मिला था टैग
रविशंकर उपाध्याय, पटना

पहली बार बिहारी स्वाद को ग्लोबल पहचान मिली है. जर्दालु आम, कतरनी धान और मगही पान को खांटी बिहारी पहचान मिल गई है़  ज्योग्राफिकल इंडिकेशन जर्नल ने तीनों बिहारी स्वाद को बौद्धिक संपदा अधिकार के तहत जीआइ टैग (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) दिया है़  28 मार्च को इसका प्रमाणपत्र जारी कर दिया गया है़. अब तक केवल बिहार के चार हस्तकरघा उत्पाद ही इस सूची में शामिल थे. जिन हस्तकरघा उद्योगों को जीआई टैग मिल चुका है उसमें मधुबनी पेंटिंग, भागलपुरी सिल्क, सुजनी और खतवा कला जीआइ टैग से युक्त उत्पाद हैं.  शाही लीची को भी अगले महीने तक जीआइ टैग प्रमाणपत्र मिल जाने की उम्मीद है. तीन उत्पादों के लिए बिहार ने 2016 में आवेदन किया था. पत्रिका ने अपने 28 नवंबर के अंक में तीनों फसलों को अद्वितीय उत्पाद मानकर प्रकाशित भी किया था.
नौ साल बाद कामयाब हुई कोशिश
बिहार कृषि विश्वविद्यालय की पहल पर तीनों उत्पादों को पहचान दिलाने की कोशिश नौ साल बाद कामयाब हुई. जुलाई 2008 को हुई पहली बार राज्यस्तरीय बैठक में यह प्रस्ताव आया था. ज्योग्राफिकल इंडिकेशन पत्रिका के मुताबिक जर्दालु आम उत्पादक संघ सुल्तानगंज ने 20 जून 2016 को आवेदन दिया था. तमाम पहलुओं की समीक्षा के बाद केंद्र सरकार ने उत्पादक संघ के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है. कतरनी धान के लिए भी 20 जून 2016 को ही भागलपुर कतरनी धान उत्पादक संघ ने आवेदन दिया था. आवेदन पर मुहर लगते ही इसकी सुगंध को खास पहचान मिल गई। इसी तरह मगही पान के लिए उत्पादक कल्याण समिति देवरी (नवादा) ने आवेदन किया था.
क्यों खास है जर्दालु
भागलपुर में होने वाले हल्के पीले रंग का यह आम 104-106 दिनों में तैयार होता है. वजन 186-265 ग्राम तक होता है. कम रेशे वाले इस आम में शुगर की मात्रा 16.33 फीसद होती है.
कतरनी की खासियत 
दाने छोटे और सुगंधित होते हैं. पत्तों और डंठल से भी विशेष तरह की खुशबू आती है. 155-160 दिनों में पककर तैयार होता है. पत्ते की लम्बाई 28-30 सेमी और पौधे 160-165 सेमी लंबे होते हैं.
इस तरह खास है मगही पान 
कोमलता एवं लाजवाब स्वाद के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है मगही पान. ज्यादातर खेती नवादा, औरंगाबाद और गया जिले में होती है. पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं और आकार दिल की तरह होता है.
यह भी जानिए: दार्जिलिंग चाय को सबसे पहले मिला था जीआई टैग
आसाम के दार्जिलिंग की मशहूर चाय भारत में पहला जीआई टैग उत्पाद 2004-05 में बना था. उसके बाद से मई 2017 तक इस सूची में कुल 295 उत्पाद शामिल हो गये हैं. भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य के रूप में भौगोलिक संकेतों का माल (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1 999 में लागू किया था.  यह कानून 15 सितंबर 2003 से प्रभावी है. जीआई को अनुच्छेद 22 (1) के तहत परिभाषित किया गया है. चेन्नई स्थित भौगोलिक उपदर्शन रजिस्ट्री (जीआइआर) जीआई टैग प्रदान करती है.
क्या है जीआई टैग?
जीआई यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन किसी उत्पाद की पहचान बताने वाली ग्लोबल टैगिंग होती है. जो इसके अधिकृत मालिक या प्रयोगकर्ता को जीआई के टैग लगाने का कानूनी अधिकार प्रदान करता है. गैर-अधिकृत व्यक्ति इसका प्रयोग नहीं कर सकता. जीआई टैग को ‘विश्व व्यापार संगठन’ से भी संरक्षण मिलता है. हर उत्पाद की विशिष्ट पहचान में उसका उद्भव, उसकी गुणवत्ता, प्रतिष्ठा तथा अन्य विशेषताएं शामिल होती है. जीआई दो प्रकार के होते हैं. पहले प्रकार में वे भौगोलिक नाम हैं, जो उत्पाद के उद्भव के स्थान का नाम बताते हैं जैसे दार्जिलिंग चाय आदि. दूसरे  गैर-भौगोलिक पारंपरिक नाम, जो यह बताते हैं कि उत्पाद किसी एक क्षेत्र विशेष से संबद्ध है. जैसे- अल्फांसो, बासमती आदि. अधिकृत उपयोगकर्ताओं के अलावा किसी भी अन्य को लोकप्रिय उत्पाद नाम का उपयोग करने की अनुमति नहीं मिलती है.