Saturday, June 30, 2018

आपने खाये हैं मगध के मूंग के लड्डू?

टेस्ट ऑफ बिहार4पटना.
1775 के आसपास नजीर अकबराबादी अपनी कविता हमें अदाएं दिवाली की ज़ोर भाती हैं, में लिखते हैं कि मगध के मूंग के लड्डू से बन रहा संजोग, दुकां-दुकां पे तमाशे यह देखते हैं लोग. खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं, बताशे हंसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं. जो बालूशाही भी तकिया लगाये बैठे हैं, तो लौंज खजले यही मसनद लगाते बैठे हैं. उठाते थाल में गर्दन हैं बैठे मोहन भोग. यह लेने वाले को देते हैं दम में सौ-सौ भोग. यह मगध के मिष्ठान्न की उस परंपरा का एक ऐतिहासिक आख्यान है जो यह बताता है कि मगध साम्राज्य में मिठाईयों का कितना महत्व रहा होगा. आज भले दुकानों से मूंग के लड्डू गायब हो गये हैं लेकिन मगध के घरों में इसे बनाने का क्रम अभी भी जारी है. खेतों से खड़ी मूंग घर पर आते ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है. इसके लड्डू दो प्रकार से बनाये जाते हैं. पहला तरीका यह होता है कि खड़े मूंग को भिगों कर मिक्सी में पीस लिया जाता है और उसके बाद मूंग को देसी घी में भूना जाता है. उसके बाद शक्कर चूर्ण मिलाकर लड्डू का शक्ल दे दिया जाता है. 
मूंग दाल का लड्डू ऐसे बनाया जाता है
मूंग की दाल को धो कर 3-4 घंटे के लिये पानी में भिगो दीजिये. दाल को धो कर पानी से निकाल लें और मिक्सी में पीस लीजिए. बादाम को भी मिक्सी में पीस कर पाउडर बना लीजिए, काजू को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लीजिए. पिस्ता को लंबाई में पतला-पतला काट लीजिए और इलायची को छील कर पाउडर बनाइए. कढ़ाई में घी डाल कर हल्का गरम कर लीजिये और इसमें दाल डाल दीजिए. दाल के अच्छे से भून जाने पर दाल का कलर चेंज होने लगता है, दाल से घी अलग होता दिखता है और अच्छी महक भी आने लगती है. दाल भून कर तैयार है. दाल को प्याले में निकाल कर थोड़ा ठंडा होने दीजिए. दाल के हल्का ठंडा होने पर इसमें बादाम का पाउडर, कटे हुए काजू, इलायची पाउडर और बूरा डाल कर सभी चीजों को अच्छे से मिलने तक मिक्स करने के बाद हाथों में थोड़ा-थोड़ा मिश्रण लेकर इस मिश्रण को दबा-दबाकर इसके लड्डू बनाये जाते हैं.

Friday, June 22, 2018

बेहतरीन गंध और हो गूदेदार तो समझो ये है दीघा का दूधिया आम

-बिहार में आम का राजा है दूधिया मालदह
टेस्ट ऑफ बिहार4पटना.
अभी मौसम फलों का राजा आम का है. हम टेस्ट ऑफ बिहार कॉलम में पहले भागलपुर के जर्दालू आम की चर्चा कर चुके हैं लेकिन इसी आम के मौसम में दीघा, पटना के दूधिया आम के जिक्र के बगैर आम पर चर्चा पूरी नहीं हो सकती है. मालदह की एक ख़ास वेराइटी पटना के दीघा इलाके में उपजती है और इलाके के नाम पर ही इसका नाम भी दीघा मालदह है. यह वेराइटी अपने मिठास, खास रंग, गंध, ज्यादा गूदा और पतली गुठली और पतले छिलके के कारण मशहूर है. पटना के दीघा घाट के मालदा आम की खुशबू और मिठास के दीवानें देश-विदेश तक फैले हैं. मालदा आम की मिठास और खुशबू की वजह से हर साल अमेरिका, यूरोप, दुबई, स्वीडन, नाइज़ीरिया, इंग्लैंड आदि देशों में रहने वाले लोग इसे वहां मंगवाते हैं. महाराष्ट्र, यूपी, गुजरात, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, राजस्थान आदि राज्यों में भी मालदह आम के कद्रदानों की भरमार है. भले ही अलफैंसों को आम का राजा कहा जाता हो लेकिन बिहार खासकर मगध में तो दीघा के दुधिया मालदा को ही आम का राजा माना जाता है. यह आम, आम लोगों के साथ-साथ मंत्रियों, नेताओं, उद्योगपतियों, सेलिब्रेटी के यहां भी भेजा जाता है.

पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद इस आम के बड़े शौकीनों में से थे.
देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को दीघा मालदह बहुत पसंद था. जब राजेंद्र बाबू दिल्ली में थे तो वे अक्सर दीघा मालदह को याद किया करते थे. जिस साल 1962 में वे पटना लौटे उस साल दीघा मालदा की बहुत अच्छी फसल हुई थी. सदाकत आश्रम के आगे काफी दूर तक सड़क के दोनों ओर आम के बगीचे थे. उस वक्त भी लोग बागानों से कच्चे आम तोड़वा कर लाते थे और उसे घर में कागज पर या चावल की बोरियों में रखकर पकाते थे.  साठ के दशक में तब आम किलो के भाव नहीं गिनती से बेचे जाते थे. तब एक रुपए में बारह से चौदह आम तक मिल जाते थे. वहीं इस ख़ास आम के स्वाद को याद करते हुए वे कहते हैं कि आम मुंह में डालते ही कुछ बहुत अच्छी चीज़ का अहसास होता था. दीघा ठीक गंगा नदी के किनारे पर बसा इलाका है. दीघा मालदह के जो चंद बागान अब भी बचे हैं उनमें बिहार विद्यापीठ का बागान भी है. यह वही विद्यापीठ है जहां राजेंद्र प्रसाद ने अपने जीवन के अंतिम कुछ महीने गुजारे थे.

Saturday, June 9, 2018

गुलाब जामुन का बिहारी संस्करण है पनतुआ

-मगध ही नहीं मिथिला में है बेहद प्रसिद्ध
टेस्ट ऑफ बिहार, पटना

जब भी हम भारतीय स्वाद की बात करते हैं तो हम सबको यह पता है कि हमारा स्वाद ग्लोबल है. विदेशियों के भारत आने और रहने के साथ ही यहां का जायका और व्यापक होता रहा. विदेशियों के साथ आने वाले कुछ मिठाइयों के स्वाद यहां खाने वालों को इतने पसंद आए कि हर शहर के लोग उन्हें पसंद करने लगे. गुलाब जामुन भी ऐसी मिठाइयों में शामिल है. गुलाब जामुन का नाम लो और मुंह में पानी ना आए ऐसे हो ही नहीं सकता. हमारे देश में मिठाइयों को ले कर नये नये प्रयोग होते रहे हैं. हम बिहार वालों ने भी अपने स्वाद को लेकर खूब प्रयोग किये. गुलाब जामुन का बिहारी संस्करण पनतुआ हम सबको याद होगा. मगध हो या मिथिला. यह स्वाद हमें अनेकों शहरों में मिलता रहा है.
ईरान से हिंदुस्तान आया गुलाब जामुन और बंगाल से बिहार पहुंचा पनतुआ
स्वाद के जानकार कहते हैं कि पनतुआ हमारे यहां बंगाल से पहुंचा. 1912 के पहले हमारा बिहार भी बंगाल का ही एक हिस्सा था. मिथिला से होते हुए मगध की इस यात्रा ने लंबा पड़ाव तय किया है. वैसे यह जानना दिलचस्प है कि गुलाब जामुन मिठाई भू-मध्यसागरीय देशों अौर ईरान से आयी थी जहां इसे लुक़मत अल क़ादी कहते हैं. लुक़मत अल क़ादी आटे से बनाया जाता है। आटे की गोलियों को पहले तेल में तला जाता है फिर शहद की चाशनी मे डुबाकर रखा जाता है. फिर इसके ऊपर चीनी छिड़की जाती है लेकिन इसके भारतीय संस्करण में कुछ बदलाव किए गए. पनतुआ काला जामुन का एक अलग रूप है, जो बिहार में बेहद प्रसिद्ध है. मीठा गहरा तला हुआ यह जायका हमें हमारे प्रयोगों के बारे में गर्व करने को भी कहता है. मावा, चीनी और दूध से बने खासमखास 'पनतुआ' का साइज छोटा है लेकिन टेस्ट में अपने गुलाब जामुन से बीस समझिए.

Sunday, June 3, 2018

लीची हो तो मुजफ्फरपुर की हो, वरना ना हो

टेस्ट ऑफ बिहार4पटना
लीची हो तो मुजफ्फरपुर की हो नहीं तो और जगहों की लीची में वो स्वाद कहां? वो रसीलापन कहां जिसमें स्वाद के शौकीन डूब जाते हैं. ब्रांड बिहार का प्रमुख एंबेसडर लीची पूरे देश में टेस्ट ऑफ बिहार को स्थापित करता है. सबसे बढ़िया किस्म की लीची बिहार में मुजफ्फरपुर के बागानों की सौगात है. इनका कंटीला छिलका आसानी से उतारा जा सकता है और भीतर वाली गुठली भी बहुत पतली- नाम मात्र की ही होती है. सुगंध और मिठास के तो कहने ही क्या! मुजफ्फरपुर की शाही लीची देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के साथ-साथ अन्य वीआईपी लोगों को भी जिला प्रशासन के द्वारा गिफ्ट के रूप में भेजी जाती है.
लीची में कैल्शियम के साथ  प्रोटीन और फास्फोरस
लीची के पेड़ की ऊंचाई मध्यम होती है. पूर्णतः पकने के बाद लीची का रंग गुलाबी और लाल हो जाता है. लीची के अंदर दूधिया सफेद भाग विटामिन सी से युक्त होता है. लीची में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम के साथ-साथ प्रोटीन खनिज पदार्थ फास्फोरस आदि पाए जाते हैं. जिसके वजह से इसका उपयोग स्क्वैश, कार्डियल, शिरप, आर.टी.एस., रस, लीची नट इत्यादि बनाने में किया जाता है. मुजफ्फरपुर में दो तरह की लीची पैदा होती है. जिसमें शाही लीची सबसे मशहूर है. शाही लीची की सबसे बड़ी खासियत यह है कि चाइना लीची के मुकाबले काफी बड़ी होती है और सबसे पहले पककर तैयार हो जाती है. हालांकि गर्म हवाओं और नमी नहीं होने के कारण शाही लीची का फल अकसर फट जाता है. ऐसे में वो चाइना लीची के आकार से थोड़ा छोटा होता है वहीं चायना लीची में फल फटने का खतरा नहीं रहता है. आम के महीने में चाइना लीची पूर्णतः पककर तैयार होती है. यह शाही लीची के मुकाबले अत्यधिक मीठी होती है.
नालंदा विश्वविद्यालय के कारण बिहार पहुंची लीची
मुजफ्फरपुर की लीची बहुत मशहूर है, लेकिन पहले-पहल भारत में यह चीन से आया था. मशहूर बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग के साथ लीची बिहार आया. जो कई बरस नालंदा विश्वविद्यालय में छात्र रहे थे. माना जाता रहा है कि लीची का मौसम चेरी, शहतूत और जामुन की तरह बहुत छोटा होता है. यानी इसका आनंद आप बहुत दिनों तक नहीं ले सकते हैं. शुरू में हर फल महंगा होता है और पहले-पहल बाजार में पहुंचनेवाला फल स्वादिष्ट भी अधिक नहीं होता. अतः और भी ज्यादा सतर्क रहने की दरकार होती है. लीची के अधिकांश शौकीन टिन में बंद पहले से छिली, गुठली निकाली हुई लीची से संतुष्ट हो लेते हैं. पर ढेरों ठंडी की लिची को खुद छीलकर निबटाने का मजा ही कुछ और है. नयी पीढ़ी लीची के शरबत, आइस्क्रीम आदि से ही परिचित है. चीन में भोजनोपरांत अवश्य लीची को वनीला आइस्क्रीम के साथ परोसने का रिवाज है.