Saturday, February 24, 2018

बिहारी नाश्ता का खास जायका घुघनी और चूड़ा

 पटना.  बिहारी नाश्ता का सबसे खास जायका यदि आपको चखना हो तो फिर घुघनी और चूड़ा से बेस्ट कुछ हो नहीं सकता. बिहार के परंपरागत पकवानों में से एक है घुघनी चूड़ा. भूने टमाटर की चटनी के साथ इसे खाने का मजा ही कुछ और है. चाहे गर्मी हो या ठंडा इस डिश का कोई जवाब नहीं है. शाम को चाय के साथ कुछ चटपटा खाने का मन हो या फिर सुबह झटपट नाश्ता कर बाहर निकलना हो. इन सबके लिए परफेक्ट है चूड़ा-घुघनी. आप भी इसे एक बार खाएंगे तो बस खाते ही रह जाएंगे. यह जायका बिहारीपन की पहचान इस वजह से भी है क्योंकि इसमें बिहार में सबसे ज्यादा पैदावार वाले अनाज धान से तैयार होने वाला चूड़ा और टाल में उपजने वाला चना शामिल होता है. यही कारण है की घुघनी चूड़ा बिहार की मशहूर रैसिपी में स‌े एक है. घुघनी चूड़ा न केवल खाने में बहुत स्वादिष्ट होता है बल्कि इसे झटपट बना कर तैयार किया जा स‌कता है. घुघनी चूड़ा बड़ों स‌े लेकर बच्चों स‌भी को बहुत पसंद आता है. इसे पुरे देश में बिहार की रैसिपी घुघनी चूड़ा के नाम से भी जाना जाता है.

....हरे चने से लेकर काले चने का होता है इस्तेमाल..... 
डाकबंगला चौराहा के पास मौर्यलोक परिसर में 20 सालों से इस जायके का स्वाद चखा रहे मोकामा के बबलू सिंह कहते हैं की  इस‌े आप घर पर बनाइये और प्याले में 2-3 टेबल स्पून घुघनी और 2-3 टेबल स्पून चूडा़ प्लेट में निकाल लीजिए और छोटी प्याली में चटनी डाल कर घुघनी चुडा़ को परोसिये और इसके टेस्टी स्वाद का मजा लीजिए. मोकामा में बड़े पैमाने पर  चने की खेती होती है इस कारण यहां चने का विविध इस्तेमाल होता है. बबलू जी कहते हैं की चूड़ा घुघनी में भी हरे चने से लेकर काले चने का इस्तेमाल होता है. यह सुपाच्य और इतना स्वादिष्ट होता है की जो एक बार खाता है वह दीवाना हो जाता है.


अपना देसी लिट्टी चोखा हो गया इंटरनेशनल


-पिज्जा बर्गर के साथ स्नैक्स को दे रहा है टक्कर
टेस्ट ऑफ बिहार, पटना
बिहार के रग रग में दौड़ता है लिट्टी चोखा का स्वाद. यह देसी स्वाद कब इंटरनेशनल हो गया यह तो इतिहास है लेकिन इसके स्वाद ने हर किसी को बिहार और बिहारीयत से रुबरु कराया है. इसकी अच्छी ब्रांडिंग ने जहां पिज्जा और बर्गर के साथ चाइनिज और विदेशी स्नैक्स को टक्कर दी है, इसने रोड साइड टेस्ट को भी नये सिरे से परिभाषित किया है. इसी कारण बिहार आने वाले चाहे बॉलीवुड अभिनेता हों या फिर देश के आम लोग जरूर लिट्टी-चोखा का स्वाद चखते हैं. यही कारण है कि बिहार ही नहीं हर प्रदेश में यह स्वाद मिल जाता है. बॉलीवुड आमिर खान तो एक तरह से ब्रांड एंबेसडर ही बन चुके हैं. वे जब भी बिहार आते हैं इसका स्वाद जरूर लेते हैं. बेली रोड पर वर्षों से लिट्टी-चोखा बना रहे बृज बिहारी कहते हैं कि आज बिहार का प्रसिद्ध लिट्टी-चोखा विदेश तक फैल गया है. इसका जायका लेने के लिए उनके दुकान पर दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. शुद्ध देशी घी में लिट्टी डुबोकर, बैंगन, टमाटर, आलू के चोखा के साथ किसी के सामने रखा दिया जाए तो इसका स्वाद चखे बिना रहना मुश्किल है. साथ में खास चटनी, आचार और सलाद इसे बेमिसाल बना देता है.
मकुनी से पैदा हुई लिट्टी
लिट्टी का ईजाद देसी मकुनी से हुई है. 70 के दशक में बनने वाली मकुनी 80-90 तक आते आते लिट्टी बन चुकी थी. मकुनी, लिट्टी का ही एक रूप होती थी. इसे पराठे के शेप में बनाकर कोयले के चूल्हे पर पकाया जाता था लेकिन फिर बाद में उसे गोल शेप देकर लिट्टी की तरह बेचा जाने लगा. उस समय से आज तक वही देशी स्टाइल की लिट्टी लोगों को काफी पसंद आ रही है. लिट्टी एक सुपाच्य और स्वास्थ्यवर्धक भोजन है. पटना में पिछले 30 वर्षों से लिट्टी-चोखा बना रहे और आमिर खान को अपने हाथों से लिट्टी चोखा खिलाने वाले बृजबिहारी का दावा है कि लिट्टी अब इंटरनेशनल डिश बन चुकी है. लिट्टी-चोखा पूरे साल लोगों का फेवरेट है. यही कारण है कि शहर में लिट्टी-चोखा की ब्रांडिंग इंटरनेशनल डिश के रूप में करने की कवायद तेज हो चुकी है. लिट्टी-चोखा को पॉपुलर बनाने के लिए लिट्टी-चोखा फूड फेस्टिवल के आयोजन से लेकर इसमें ग्लैमर का तड़का भी लगाया जा रहा है.
ऐसे बनता है लिट्टी-चोखा:-
लिट्टी-चोखा बनाने के लिए सबसे पहले आटे में दूध या पानी मिलाकर इसे गूंथा जाता है. इसके बाद इसमे स्टफिंग के लिए चने के सत्तू का मिश्रण तैयार किया जाता है. मिश्रण तैयार करने के लिए सत्तू में हरी मीर्च, धनिया पत्ता, लहसुन, प्याज, अजवायन, सरसों का तेल मिलाया जाता है. इसके बाद गूंथे हुए आटे की लोई बनाकर उसमें सत्तू के मिश्रण की स्टफिंग की जाती है फिर इसे गोल-गोल करके कोयले के चूल्हे पर सेक कर पकाया जाता है. लिट्टी के पकने के बाद इसे शुद्ध देशी घी में डुबोकर बैंगन, टमाटर, आलू के चोखा के साथ परोसा जाता है. इसके साथ सरसों और धनिया की खास तरह से तैयारी की गयी चटनी, सलाद और आचार भी दिया जाता है.

Wednesday, February 21, 2018

मनेर के लड्डू: जो ना खाये वह पछताये


पटना.  
शादी के लड्डू तो बहुत खाये होंगे लेकिन पटना जिले के मनेर के लड्डू यदि अापने नहीं खाए हैं तो आपके पास केवल पछताने का ही विकल्प है. क्योंकि पटना के पास लगभग 30 किलोमीटर  स्थित मनेर के लड्डू काफी मशहूर ही नहीं विश्वविख्यात हैं. अपनी मिठास और देशी घी की महक लिए मनेर के लड्डू की जायकों में अपनी खास पहचान है. लड्डू भारत की काफी प्रसिद्ध  मिठाई है. लड्डू देखते ही लोगो के मुंह में पानी आ जाता है पर लड्डू जब  मनेर का हो तो फिर क्या कहना. इसके लिए हरेक शब्द कम हैं आपको इसके लिए इसका स्वाद लेना होगा.
मुगलों के दौर से है प्रसिद्धि 
दुनिया भर में मशहूर मनेर के लड्डू का इतिहास बेहद पुराना है. मनेर शरीफ के सुयैब खान बताते है, पहली बार मुगल बादशाह शाह आलम अपने साथ दिल्ली से ‘नुक्ती के लड्डू’ लेकर मनेर शरीफ में पहुंचे थे. यहां की खानकाह के गद्दीनशीं और अन्य लोगों को लड्डू बेहद पसंद आए थे. इसके बाद शाह आलम दिल्ली से कारीगर लेकर फिर इस स्थान पर पहुंचे. इन कारीगरों ने स्थानीय लोगों को लड्डू बनाने के तरीके बताए. उन्होंने बताया कि शाह आलम पहली बाद इमली के पत्ते से बने दोने में लड्डू लेकर पहुंचे थे. धीरे-धीरे स्थानीय कारीगर लड्डू बनाने में निपुण हो गए और आगे चलकर ये लड्डू 'मनेर के लड्डू' के रूप में विश्व प्रसिद्ध हो गए.
अंग्रेजों ने दिया था वर्ल्ड फेमस लड्डू का खिताब
करीब सौ वर्ष पुरानी दुकान मनेर स्वीट्स के मालिक सत्येन्द्र कुमार का कहना है, अमेरिका, इंग्लैंड, दुबई सहित कई अन्य देशों में यहां से सौगात के रूप में मनेर के लड्डू भेजे जाते हैं. अंग्रेजों ने मनेर के लड्डू का स्वाद चखकर इसे वर्ल्ड फेम लड्डू का करार देकर प्रमाणपत्र दिया था. मनेर स्वीट्स में आमिर खान जैसे कई बड़े अभिनेता लड्डू का स्वाद चखने आ चुके हैं.  आज मनेर में लड्डू की पचास से ज्यादा दुकानें हैं. लड्डू बनाने के लिए शुद्ध घी, बेसन, चीनी व अन्य सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है. पटना के आसपास से गुज़रने वाले लोग इन दुकानों पर पहुंचकर लड्डू खरीदते हैं.

Saturday, February 17, 2018

बिहारी इडली का लेना हो जायका तो खाइए सीमांचल का 'भक्का'


पटना.

यदि आपको बिहारी इडली का जायका लेना हो तो आप सीमांचल का भक्का ट्राय कर सकते हैं. हल्की ठंड के इस मौसम में अपने बेहतरीन स्वाद के कारण साउथ इंडियन इडली पर सीमांचल के जिलों में बनने वाला स्पेशल 'भक्का' भारी पड़ता है. पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज, सुपौल जिले के बाजार में मिलने वाला भक्का बिल्कुल इडली की तरह होता है. भक्का हांडी के भाप से बनता है लेकिन यह नमकीन नहीं बल्कि मीठा होता है, इसमें गुड़ की मिठास होती है. सर्द मौसम में भक्के की चाहत इन जिलों में इडली पर भारी पड़ती है.
चावल के साथ होता है गुड़
साउथ इंडियन इडली में चावल के साथ उड़द की दाल होती है जबकि मिट्टी के हांड़ी में पकनेवाले भक्के में चावल के साथ गुड़ भी होता है. जाड़े के दिनों में सीमांचल के लोग भक्के से भरपेट का नाश्ता करते हैं और भक्का दुकानों पर लोगो की भीड़ सुबह सात से दस के बीच लग जाती है. भक्का के शौकीन कहते हैं कि यह काफी सुपाच्य नास्ता होता है. इसलिए लोग इसे काफी पसंद करते हैं. भक्का घरों में धान की नयी फसल के आने का जश्न भी होता है.
इडली की तरह ही होते हैं तैयार
खाद्य और व्यंजन सामग्रियों में अनाज और मीठा, नमकीन का महत्व तो होता ही है उसके पकाने के तरीके का भी स्वाद से सीधा वास्ता होता है. भांप के जरिये ही इडली भी बनता है और यह भक्का भी दोनों का आकार और प्रकार अलग अलग है पर दोनों एक समान रूप से तैयार होते हैं. महज पांच से दस रुपये प्लेट मिलने वाले इस स्वाद के शौकीन सीमांचल के ज्यादातर लोग हैं जो सर्द मौसम का इंतजार इस स्वाद के लिए भी करते रहते हैंं.

Saturday, February 10, 2018

बिहारशरीफ में वादों की नहीं बेहतरीन स्वाद की रेवड़ियां

  
टेस्ट आॅफ बिहार, पटना. 
चुनाव में आपने नेताजी के वादों की कड़वी रेवड़ियां तो खूब चखी होगी लेकिन नालंदा जिले के मुख्यालय बिहारशरीफ में मिलने वाली मीठी और बेहतरीन स्वाद वाली रेवड़ियों का स्वाद नहीं चखी है तो उसे जरूर आजमा सकते हैं. बिहारशरीफ के गढ़ पर और रामचंद्रपुर में मिलनेवाली रेवड़ियों के स्वाद बरसों से अपनी धाक जमाए हुए है. यहां करीब सौ सालों से रेवड़ी बनायी और बेची जाती है. यहां की रेवड़ी इस कदर पूरी दुनिया में मशहूर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां पर रेवड़ी, गजक का कारोबार लाखों में होता है. रेवड़ी बनाने वाले कारीगरों के अनुसार, पहले गुड़ को भट्टी पर तेज आंच में पकाया जाता है. गुड़ की चासनी बनाते समय उसमें घी मिलाया जाता है. चासनी जब पककर तैयार हो जाती है तो उसे ठंडा किया जाता है. ऐसे में ठंडी चासनी को इकट्ठा कर उसे फिर मथने का कार्य किया जाता है. चासनी को जितना मथा जाता है उसका स्‍वाद उतना ही बढ़ता है. ठंडी होने के बाद चासनी रबड़ की तरह खिंचती है.
छोटे-छोटे गोल टुकड़े बनाए जाते हैं
देवी सराय के रहने वाले स्वाद के कद्रदान अजीत कुमार पांडे बताते हैं कि इस तैयार माल को अच्छी तरह मथने के बाद उसके रोल बनाए जाते हैं. रोल के छोटे-छोटे टुकड़े काटे जाते हैं. इन टुकड़ों को हल्की आंच में गरम तिलों में मिलाया जाता है. कढ़ाई के अंदर हल्की आंच पर गरम हो रहे तिलों के साथ गुड़ रोल के इन छोटे-छोटे टुकड़ों को तब तक मिक्स किया जाता है जब तक तिल गुड़ रोल के टुकड़े में पूरी तरह मिक्स नहीं हो जाए. तिल मिलने पर यह गुड़ का छोटा सा रोल रेवड़ी की शक्ल ले लेता है.

बीमारियों को दूर भगाती है रेवड़ियां 
तिल और गुड़ से बनी हुई रेवड़ी, गजक खाने से बीमारियां भी दूर भागती हैं. निश्चित तौर पर तिल और गुड़ की वजह से रेवड़ियां बीमारियों को भी दूर भगाती हैं. सर्दियों में गुड़ का सेवन और तिल का सेवन वैसे भी फायदेमंद होता है. ऐसे में बिहारशरीफ की बनी हुई गजक सर्दियों का एक मशहूर खाद्य पदार्थ बन गया है. यह टेस्ट इस इलाके में संदेश के तौर पर शहर दर शहर पूरे देश में जाता रहा है. अभी इसकी दर सौ रुपये प्रति किलो से दो सौ रुपये किलो के बीच में है.

Saturday, February 3, 2018

स्वाद का मनाना हो जश्न तो खाइए पटना सिटी की खुरचन

 टेस्ट ऑफ बिहार, पटना
अपने बिहार में स्वाद के शायद ही कोई शौकीन हों जिन्होंने पटना सिटी के खुरचन का स्वाद नहीं लिया हो़  सिटी की कचौड़ी गली से निकल इसके दमदार स्वाद की कहानियां विदेशों तक पहुंची हुई है़  राजनेता से लेकर अभिनेता इस बेमिसाल स्वाद के दीवाने हैं. खौलते दूध से मलाई की परत को खरोंच-खरोंच कर तैयार होने वाली इस मिठाई को सिटी के शहीद भगत सिंह चौक से आगे कचौड़ी गली में सूरज गुप्ता महादेव गुप्ता का परिवार पिछले 150 वर्षों तैयार कर रहा है. दुकान के स्वाद की प्रसिद्धि ऐसी है कि दूर-दूर से आने वाले कद्रदान भी सीधे यहां पहुंच जाते हैं. सूरज गुप्ता बताते हैं कि परदादा द्वारिका प्रसाद गुप्ता द्वारा खुरचन बनाना शुरू किया गया था. पिता प्रताप प्रसाद गुप्ता ने भी इस कला को जीवंत रखा है. स्वाद गुणवत्ता की वजह से खुरचन के कद्रदान हर दिन बढ़ते गए. पटना के लोग विदेशों में रहने वाले परिजनों को सौगात के रूप में खुरचन भेजते हैं. पटना से अमेरिका, कनाडा, जापान, सिंगापुर या फिर दूसरे देश में जाकर बसने वाले लोग यह पूछते हैं कि क्या अभी सिटी की सोंधी मिट्‌टी के बर्तन में खुरचन की खुशबू बरकरार है. मकर संक्रांति, दीपावली जैसे त्योहारों में मांग और भी बढ़ जाती है. बेटियों को विदा करते वक्त सौगात के रूप में खुरचन भेजना लोग नहीं भूलते हैं. खुरचन पूरे साल बनता है. गर्मी के दिनों में मात्र दो दिन, जबकि जाड़ा में चार दिनों तक इसे सुरक्षित रखा जा सकता है.
किसी कला से कम नहीं है खुरचन को तैयार करना
खुरचन को तैयार करना किसी कला से कम नहीं है. सूरज गुप्ता बताते हैं कि खुरचन बनाना एक जटिल कला है. एक किलो दूध को पांच लोहे की कड़ाही में डाल कर कम आंच के चूल्हे पर चढ़ा कर खौलाया जाता है. दूध के ठंडा होने पर जमी परत को सींक से उतार कर थाली में रखा जाता है. इसके बाद दूध की पतली परतों के बीच कुछ खास चीजें डाली जाती हैं. इस कारण सीएम नीतीश कुमार हों या फिर लालू प्रसाद यादव, शत्रुघ्न सिन्हा हों या फिर अमित शाह सभी ने इस स्वाद को चखा है. आम से लेकर खास लोगों के बीच खुरचन की स्वाद की पहचान कायम है. दुकानदार का कहना है कि खुरचन की गुणवत्ता स्वाद ही पहचान है, जिसमें कोई समझौता नहीं होता है. इसकी कीमत फिलहाल 500 रुपए प्रति किलो है.