Saturday, March 31, 2018

बिहारियों की आस्था से लेकर प्रवासी प्रेम का पकवान है "ठेकुआ"

बिहारियों की आस्था से लेकर प्रवासी प्रेम का पकवान है "ठेकुआ"
पटना.  
ऐसा पकवान जिसमें पानी कम हो और वह ज्यादा तला हो तो खाना लंबे वक्त तक खाने योग्य रहने का साइंस. इसके बाद कम पानी में आटे के ऐंठन को रोकने के लिए खूब ठोकते ठुकाते पड़ा ठेकुआ का व्यावहारिक नाम. यह ऐतिहासिक पकवान ना केवल आस्था के पर्व बल्कि हमारी पीढ़ियों के प्रवासी होने के प्रेम से जुड़ा है. यही कारण है कि लोक आस्था के महापर्व छठ के प्रसाद के रूप में देश भर में प्रसिद्ध ठेकुआ हमारा ऐसा पकवान है जो बिहारीपन की सुगंध लिए हमारे आस पास पूरे साल ध्यान खींचता रहता है. कभी यात्राओं में भूख को शांत करने के लिए साथ होता है तो कभी श्रद्धा के प्रसाद के रूप में भी हमारे जेहन में बसा रहता है. अभी चैती छठ के बीते महज सात दिन ही हुए हैं लेकिन ठेकुआ हमारे आपके किचन के एयर टाइट कंटेनर में अभी भी विद्यमान होगा. स्वाद में मीठे, एकदम खस्ता, कुरकुरे ठेकुआ बनाने के लिए आटे, घी और चीनी का इस्तेमाल होता है. इसे बनाकर आप कहीं भी किसी रोड ट्रिप पर आराम से पैक करके ले जा सकते हैं. वहीं आप अपनी दूसरी किसी पार्टी में भी इन्हें सर्व भी कर सकते हैं.
ना केवल इसका नाम बल्कि इसका इतिहास भी बहुत रोचक है. 
पत्रकार मदन मोहन झा कहते हैं कि बहुत पहले से पहले हमारे पूर्वज कमाई के लिए बंगाल और पूर्वोत्तर भारत में प्रवासी बनकर जाते थे. दिवाली के पहले आकर छठ के बाद जाते में कम से कम दो तीन दिन का सफर. सफर में भूख कैसे मिटे? सवाल यह भी था. अब जब कलकत्ता पहुंच जाएंगे तो वहां भी भूख शमन करने के लिए नाश्ता चाहिए. इसके बाद ठेकुआ बना. हमारे प्रवासी होने के इतिहास से जुड़ा है ठेकुआ का इतिहास. अब छठ में ठेकुआ के शामिल होने की कहानी को इस तर्क से समझ लीजिए कि इस पूजा के प्रसाद को बारह चौदह घंटे रखना पड़ता है दूसरा कोई अन्न वाला प्रसाद तो ग्रहण करने लायक नहीं बचेगा सो छठ में यह समाहित हुआ.
ऐसे बनाएं ठेकुआ:- 
सबसे पहले गुड़ या चीनी को पानी में डाल कर एक बर्तन में लगभग एक घंटे के लिए भिगो दें. अगर गुड़ भिंगोने पर भी एक घंटे में ना पिघले, तो पानी को गैस पर तेज आंच में रखकर गर्म करके अच्छी तरह पिघला ल.इसके बाद गैस बंद करें और गुड़ का घोल ठंडा होने रख दें. इस बीच परात में गेहूं का आटा छान लें और उसमें कद्दूकस किया नारियल, पिसी इलायची, सौंफ और 2 चम्‍मच घी डालकर दोनों हाथों से रगड़ते हुए अच्छी तरह मिलाएं. अब इस आटे को गुड़ वाले पानी से सख्‍त गूंथ लें. आटे में से बराबर लोई तोड़े और इन्हें गोल करके हथेलियों के बीच रखकर दबा दें. इस तरह सारे ठेकुआ तैयार करके एक प्लेट में रख लें. अब एक कड़ाही में घी डाल कर, उसे गैस पर तेज गर्म करें, फिर आंच मध्यम कर दें. इसके बाद एक साथ 3 से 4 ठेकुए डालकर दोनों तरफ से गहरा भूरा होने तक तलें. इसी तरह सभी ठेकुआ बना कर एक प्‍लेट में रख कर स्वाद लें. 

Thursday, March 22, 2018

हर शाम के नाश्ते का बिहारी ट्रेडमार्क है भूंजा


-भूंजा में तेल-प्याज मिलाइए या मिक्चर, कचरी मिलाइए या दालमोट. स्वाद का सरताज है भूंजा
पटना. 

गर्मी की धूल भरी हवाओं को झेलने के बाद थक चुकी शाम हो या फिर सर्द हवाओं से सिहरती गर्म आगोश ढूंढ़ती शाम. बरसात की बूंदाें पर थिरकती शाम के साथ हो या बसंत की जवां होती हसरतों भरी शाम. हरेक शाम में जायके की तलाश का ट्रेडमार्क है अपना भूंजा. जैसा आप सबको मालूम है कि बिहारी खाद्य पदार्थों में चावल की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. इस कारण चावल से बनने वाले कई तरह के जायके हमारे मेनू में शामिल होते हैं. भूना हुआ चावल जो भूंजा या मूढ़ी भी कहा जाता है, हमारे शाम के नाश्ते का सबसे अहम हिस्सा है.
इसमें चना, मकई, मटर और चूड़ा मिक्स कर दीजिये या मौसम के अनुसार हरा चना और दालमोट के अलावा कच्चा सरसो तेल मिला दीजिये. हरी मिर्च या लाल मिर्च पाउडर और प्याज के बारीक टुकड़े अपनी पसंद से डाल दें तो फिर आपकी शाम बन जायेगी. न अधिक तेल, न ज्यादा मसाला. न गले और सीने में जलन और न ही गैस की कोई समस्या. बच्चा खाएं या बुजुर्ग, किसी को भी आसानी से डाइजेस्ट हो जाए. इसे सुपाच्य भोजन की श्रेणी में रखा जाता है और इसका स्वाद? इसकी तो बात ही मत पूछिए तो बेहतर है. जिसने इसे चख लिया समझिए इसका मुरीद हो गया फिर उसे दूसरा कुछ नहीं सुहाता. महाराष्ट्रीयन भेल के बहुत पहले से हमारे बिहार का यह खास डिश ना केवल राज्य में बल्कि जहां जहां बिहारी गये उनकी पहचान में शामिल हो गया.

इस जायके में घुला हुआ है सामूहिकता का भाव
बात पहले भूंजा की. बालू में भूने चने, मकई, चावल आदि के दाने और पसंद के अनुसार नमक, तेल, प्याज, अदरख, लहसुन और कई दूसरी चीजें भी जिसे आप डालने चाहें, डालें और मस्त होकर खाएं. इसके जायके में सामूहिकता का भाव घुला हुआ है. लंबी यात्रा करनी हो या फिर दोस्तों के साथ समय व्यतीत करना हो. आपके सफर को आसान करने वाला आहार है भूंजा. खाते खाते कट जाये रस्ते जैसे. भुंजा को खाने का मजा तो ग्रुप में ही आता है. भीषण गप्पबाजी हो तो फिर कहना ही क्या? देश, राज्य के साथ ही विदेश पर चर्चा का अंतहीन दौर हो और उसमें भूंजा शामिल हो तो फिर चर्चा का मजा कई गुना बढ़ जाता है.

Saturday, March 17, 2018

गर्मी आते ही हर शहर का फास्ट फूड हो जाता है अपना 'सत्तू'




टेस्ट ऑफ बिहार, पटना
कोलकाता हो या मुंबई. दिल्ली हो या चेन्नई. गर्मी के मौसम में अपना सत्तू हर शहर का फास्ट फूड बन जाता है. कोई इसका शरबत बनाकर पीता है तो कोई इसका स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर खाता है. सत्तू को इतना पसंद किए जाने का कारण सिर्फ इसका स्वाद ही नहीं है बल्कि सेहत से जुड़े यह अनमोल फायदे भी हैं. गर्मी के मौसम में सूरज सुबह से ही अपनी रौ में रहते हैं और इस मौसम में हल्का और सुपाच्य सत्तू ऐसा खाद्य पदार्थ होता है जो अपने आप में एक संपूर्ण आहार माना जाता है. भौगोलिक कारणों के कारण चने का उत्पादन बिहार में बड़े पैमाने पर होता है और इससे बनने वाले सत्तू के गुणों के प्रशंसक देश के कई राज्यों में मिल जाते हैं. चने का सत्तू गर्मी में पेट की बीमारी और तापमान को नियंत्रित रखने में मदद करता है. सत्तू में फाइबर, कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन, स्टार्च और अन्य खनिज पदार्थ होते हैं. इसे पानी के साथ लेने से पेट ठंडा रहता है. चने के सत्तू में मूंग और सोया मिला लेने से सत्तू सेहत के लिए और फायदेमंद हो जाता है. सत्तू में रक्त साफ करने का गुण होता है जिससे खून की गड़बडियां दूर होती हैं.

सत्तू से बनते हैं कई स्वादिष्ट व्यंजन, पेट की समस्याओं से निजात दिलाता है सत्तू
वैसे तो आप सत्तू को ठोस और तरल, दोनों रूपों में ले सकते हैं पर आप सत्तू से बहुत तरह के स्वादिष्ट व्यंजन भी बना सकते हैं जैसे सत्तू की कचौड़ी, सत्तू का पराठा, सत्तू का लड्डू, नमकीन या मीठा शरबत यदि आप चने के सत्तू को पानी, काला नमक और नींबू के साथ घोलकर पीते हैं, तो यह आपके पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद होता है. सत्तू के सेवन से ख़ासकर गर्मी के मौसम में पेट की समस्याओं से निजात पाया जा सकता है. बाज़ार में बिकने वाले शीतल पेय पदार्थ लोगों को आकर्षित तो कर सकते हैं, लेकिन गर्मी के मौसम में संतुष्ट करके स्वास्थ्य नहीं दे सकते बल्कि हानिकारक होते हैं, जबकि चने से बना सत्तू गर्मी से निजात दिलाने के साथ साथ शरीर के लिए काफ़ी लाभदायक है और तो और ये सारे वर्ग के लोगों के बजट में भी फिट बैठता है.

Saturday, March 10, 2018

बेहतरीन स्वाद का हमकदम, दलसिंह सराय का रसकदम


पटना.
छेना के ऊपर शुद्ध खोए की मोटी परत और फिर उस पर लिपटा पोस्ता दाना यानि तीन स्तरों पर निर्मित इस मिष्टान्न रसकदम के अद्भुत स्वाद ने न जाने कितने जीभों को जीवंत किया है. बंगाली मूल की इस मिठाई में बिहारी स्वाद समस्तीपुर जिले के कस्बे दलसिंहसराय ने ही घोला है. इस कस्बे में रसकदम कई दुकानों पर सजे मिल जाएंगे. रसकदम का विशुद्ध अनुभव यदि आपने एक बार चख लिया तो समझिए रसकदम को देखकर खुद को रोक नहीं पाएंगे. आपके मुंह से पानी आने लगेगा. इसे खीर कदम और खोया कदम भी कहते हैं. दलसिंहसराय के रजनीश प्रकाश जो भंसा घर नामक ब्लॉग भी लिखते हैं वे कहते हैं कि रस कदम दलसिंहसराय की खासियत है. काम के सिलसिले में खूब घूमना हुआ है, लेकिन रसकदम की उपस्थिति को कहीं और दर्ज कर पाने में असफल ही रहा हूं. जिस प्रकार तिरुपति के लड्डू, धारवाड़ का पेडा और हैदराबादी हलीम की तरह दलसिंहसराय के रस कदम का ज्योग्राफिकल इंडिकेशन के रुप में पंजीकृत होने का प्रॉपर हक बनता है.
ऐसे बनता है रसकदम:
रसकदम बनाने के लिए सबसे पहले छैना बनाया जाता है. कॉर्न फ्लोर और पीला रंग डालने के बाद कुकर में चीनी और 2 कप पानी डालकर उबलने के लिए रख दीजिए, चीनी को पानी में घुलने तक पका लीजिये, चाशनी में केसर के धागे डाल दीजिये और चाशनी में उबाल आने दीजिये. पास्ता दाना को भून लीजिए.दाना ड्राई होकर हल्का ब्राउन हो जाए तो मावा में पाउडर चीनी डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लीजिए. अब मावा से लड्डू के आकार के लगभग 11 छोटे-छोटे गोले तोड़ लीजिए. एक गोले को उठा कर इसको चपटा करके बढा़ थोड़ा बड़ा कर लीजिये. फिर इसमें एक रसगुल्ला रखकर चारों ओर खोया से बंद करके गोल लड्डू का आकार दे दीजिए. इस गोले को भूने पोश्ता दाने में लपेट कर थाली में रख दीजिए सारे रसकदम इसी तरह बनाकर तैयार कर लीजिए. रसकदम को 1 घंटे के लिए फ्रिज में रख कर उसके बाद सर्व कीजिए. रसकदम फ्रिज में रखकर 3-4 दिन तक खाये जा सकते है.


Sunday, March 4, 2018

स्वाद में सौंधापन बरसा, तो समझो ये है मगध का अनरसा



पटना. मगध में मिलने वाला अनरसा आजकल भले देश के कई हिस्सों में मिलता हो लेकिन इस बिहारी टेस्ट की पहचान पटना, नालंदा, गया, नवादा और जहानाबाद जिले से ही है. मगध मध्यकालीन भारत में भारत का राजधानी थी इस कारण इस इलाके में शहरी संस्कृति काफी लंबे समय तक विद्यमान रहा. शहरी संस्कृति के कारण यहां कई नये पकवानों ने जन्म लिया था. ये नये पकवान यहां की जमीन पर उपजने वाले फसलों से बनाये गये और इसके साथ ही बाहर उपजने वाले अनाजों के साथ भी काफी प्रयोग किया गया. अनरसा भी उसी में से एक है. यह चावल से बनाई जाती है, इसमें चावल के आटे का प्रयोग होता है, दही और घी के साथ तिल भी प्रयोग में आते हैं. गर्म-गर्म अनरसे खाने में बेहद कुरकुरे और साैंधे होते हैं. ये बच्चे हों या बड़े सभी को बहुत पसंद आते हैं. यह आपको सभी मौसम में मिलते हैं. खोया मिल अनरसा आपको ठंडा होने पर भी काफी लजीज लगता है. यह लंबे समय तक टिकने वाला डिश भी है.
चावल को तीन दिनों तक भिंगोकर बनाया जाता है अनरसा
अनरसा के कारीगर शंभू राउत बताते हैं कि अनरसा बनाने के लिए सबसे पहले चावल को साफ करके धोकर 3 दिनों के लिए भि‍गो दिया जाता है. लेकिन हर 24 घंटे के बाद उनका पानी बदलते रहना जरूरी है. 3 दिन बाद चावलों को एक बार और धो लें और फिर उनका पानी निकाल कर उन्हें किसी छायादार स्थान पर सूती कपड़े के ऊपर फैला दें. जब चावल का पानी सूख जाए, पर नम बने रहें तो मिक्सर में मोटा-मोटा पीस लें. अब चावल का आटा, शक्कर का पाउडर, दही, घी को आपस में मिला लें और थोड़ा कड़े आटा की तरह गूंथ कर इसे गीले कपड़े से 12 घंटे के लिए ढंक कर रख दिया जाता है. आटे की छोटी-छोटी लोई बना लें और उन्हें तिल के ऊपर रख कर घुमा कर चारों ओर तिल लिपट जाए. इसके बाद एक कढ़ाई में घी गरम करें. घी गरम होने पर आंच मीडियम कर दें और उसमें अनरसे की गालियों को डाल कर उलट-पुलट कर लाल होने तक तल लें. अनरसे की स्वादिष्ट मिठाई तैयार है. इसके बीच में खोया भरकर और स्वादिष्ट अनरसे का भी मजा ले सकते हैं.

Saturday, March 3, 2018

मिथिला की समझनी हो तासीर तो खाइए मखाने की खीर


टेस्ट ऑफ बिहार, पटना
मखाना. यह नाम आते ही आपको मिथिला क्षेत्र की याद हो आयेगी. एेसा इसलिए है क्योंकि दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, सुपौल, सीतामढ़ी, पूर्णिया, कटिहार आदि जिलों में मखाना का सर्वाधिक उत्पादन होता है. आंकड़ों के अनुसार मखाना के कुल उत्पादन का 88% बिहार के इन्हीं जिलों में होता है. मखाने के बीज को भूनकर इसका उपयोग मिठाई, नमकीन, खीर आदि बनाने में होता है. मखाने खाने में इतने पसंद होते हैं कि कुछ लोग इसे भूनकर खाते हैं तो कुछ लोगों को इस की खीर बहुत पंसद होती है. मखाने की खीर बना कर आप व्रत में खा सकते है. मखाने के पोषक तत्व स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं इस कारण इसे बच्चो को भी बनाकर दिया जाता है. मखाने की खीर बनाने वाली एेश्वर्य कहती हैं कि इसे बनाना बहुत आसान होता है. पहले मखाने को काट कर रख लें. एक कड़ाही गरम करके, उसमे घी डालें. अब कटे हुए मखाने को कड़ाही में डालकर भून ले. अब दूसरे गहरे बर्तन में दूध और मखाना डालकर उबालें. जब उबाल अ जाए तो गैस धीमा करके चलाते हुए पकाएं. दूध जब थोड़ा गाढ़ा हो जाए तो उसमे चीनी, इलायची पाउडर, बादाम, चिरौंजी और काजू डालकर चलायें.10 मिनट तक पकने के बाद गैस बंद कर दें. थोड़ा ठंडा होने पर बादाम उपर से डालकर सर्व करें. 
औषधीय गुणों से होता है भरपूर
शोध छात्र शैलेंद्र बताते हैं कि तालाब, झील, दलदली क्षेत्र के शांत पानी में उगने वाला मखाना पोषक तत्वों से भरपूर एक जलीय उत्पाद है.  मखाने में 9.7% आसानी से पचनेवाला प्रोटीन, 76% कार्बोहाईड्रेट, 12.8% नमी, 0.1% वसा, 0.5% खनिज लवण, 0.9% फॉस्फोरस एवं प्रति सौ ग्राम 1.4 मिलीग्राम लौह पदार्थ मौजूद होता है. इसमें औषधीय गुण भी होता है. इसी कारण 28 फ़रवरी 2002 को दरभंगा के निकट बासुदेवपुर में  राष्ट्रीय मखाना शोध केंद्र की स्थापना की गयी थी. दरभंगा में स्थित यह अनुसंधान केंद्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत कार्य करता है.