Saturday, August 11, 2018

कटहल का कोए में बसा है ठेठ बिहारी स्वाद

टेस्ट ऑफ बिहार4पटना.
कटहल भले हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश का राष्ट्रीय फल है लेकिन कटहल का फल जिसे कोवा भी कहते हैं उसमें ठेठ बिहारीपन बसा हुआ है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की पटना इकाई ने जो दो उन्नत प्रजातियां विकसित की है उसमें सब्जी के लिए स्वर्ण पूर्ति अौर पके फल (कोवा) के लिए स्वर्ण मनोहर प्रजाति के रूप में पूरे देश में पायी जाती है. देश में जहां केरल ने कटहल की सबसे प्रजातियां चिह्नित की है लेकिन उनका फोकस कटहल से बनने वाले आटे और अनाज पर ज्यादा केंद्रित है वहीं फल पर बिहार का एकाधिकार है जो सभी जगहों पर दिखायी देती है. कटहल का हमारे समाज से भी बेहद करीब का जुड़ाव है. एक कहावत भोजपुरी में बहुत इस्तेमाल किया जाता है खासकर जब कोई बहुत भाव खा रहा होता है. ..अदरी बहुरिया कटहर न खायकहावत है कि ...अदरी बहुरिया कटहर न खाय, मोचा ले पिछवाड़े जाये. कहावत के पीछे की कहानी  ये है कि घर में नयी बहू आई है और सास उसको बहुत मानती है तो कहती है कि बहू कटहल खा लो, लेकिन बहू को तो कटहल से ज्यादा भाव खाने का मन है तो वो नहीं खाती है. लेकिन उसका मन तो कटहल के लिए ललचा रहा था. तो जब सब लोग कटहल का कोवा खा चुके होते हैं तो जो बचे खुचे हिस्से होते हैं जिन्हें मोचा कहा जाता है और जिनमें बहुत ही फीका सा स्वाद होता है और जिसे अक्सर फेंक दिया जाता है, बहू कटहल का वही बचा खुचा टुकड़ा घर के पिछवाड़े में जा के खाती है.
बहुपयोगी है कटहल का कोवा
कटहल मधुमेह पर नियंत्रण में सहायक है. वहीं सिडनी यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक कटहल में फाइबर अधिक पर प्रोटीन, कैलोरी व कार्बोहाइड्रेट कम होने से यह वजन घटाने में भी मददगार है. यह फल कच्चा व पका दोनों रूपों में स्वादिष्ट व लोकप्रिय है. अब कटहल की प्रोसेसिंग कर इससे जैम, अचार, चटनी, शरबत, हलवा व जूस सहित चिप्स व नट केक भी बनाया जाता है वहीं बिरयानी, डोसा, पूड़ी, समोसा, काठी रोल, उपमा, उत्तपम व इडली  बनाने में भी कटहल का प्रयोग हो रहा है. 

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