Thursday, November 9, 2017

टेस्ट ऑफ यूपी@बिहार: सोनपुर मेले में सौ साल से बिखर रही यूपी के पापड़ी मिठाई की खुशबू

-यूपी के बहराइच से बेचने के लिए आ रहा एक दर्जन मुस्लिम परिवार
सोनपुर.


सोनपुर मेले में मुख्य बाजार से चिड़िया बाजार रोड पर पश्चिम दिशा में बढ़िए तो यहां यूपी के बहराइच के कई पापड़ी वाले दिखाई देंगे. यह पापड़ी की कई वैराइटी के साथ-साथ हलवा पराठा और मियां मिठाई बेचते हैं. इन सारी मिठाईयों का यहां शतक वर्ष चल रहा है. बहराइची हलवा-पराठा ऐसे कि देखते ही जी ललच जाए. दाम 140 रुपए किलो. बेसन की स्पेशल पापड़ी 80 रुपये किलो और खजूर की पापड़ी भी इतनी ही कीमत में. बहराइच और उसके आसपास के दो दर्जन से अधिक बुजुर्ग युवक मेले में हलवा-पराठा बेच रहे हैं. बहराइच से आये वारिस अली जिनकी उम्र 75 साल है वे कहते हैं कि दो पुश्त से वे यहां आ रहे हैं. उनकी उम्र ही निकल गयी इसके पहले इनके पिता और दादा भी सोनपुर आते थे. इनके अलावा बहराइच के तीन और परिवार यहां इस कारोबार के लिए पहुंचते हैं.
मो मुनिम, रहिस अली और सईद अहमद ये भी चालीस सालों से पहुंच रहे हैं. वारिस अली कहते हैं कि पहले बहराइच के रइस अली पापड़ी लेकर आए थे और उसके बाद तो वहां से कई आने लगे. खास बात ये कि ज्यादातर दुकानों पर रईस अली व वारिस अली पापड़ी वाले के नाम ही अंकित हैं. अभी मेले में पापड़ी की कुल एक दर्जन से ज्यादा दुकानें हैं. नखास मोड़ पर बहराइची हलवा-पराठा बेचे रहे रहिस अली बताते हैं, वे ग्यारह साल की उम्र से इस मेले में आ रहे हैं. पहले दादा के साथ तो बाद में पिता के साथ. पिछले पचास वर्षों से खुद आ रहे हैं. घर चलाने लायक आमदनी हो जाती है. उत्तरप्रदेश के दूसरे मेलों में भी जाते हैं. बरसात के बाद ही हम इस मेले में आने की तैयारी करने लगते हैं.
आपका मुंह खट्टा कराएंगे स्वाद में निराले झारखंड के स्पेशल अचार

पहले जहां चिड़िया बाजार लगता था अब वहां पर झारखंड के विभिन्न शहरों से आये लोग आपके मुंह में पानी ला देंगे. इसका कारण यह है कि यहां पर 20 तरह के अचार मिल जायेंगे. आपको आंवले का पंसद है या ओल का? बांस का या फिर आम का. सभी मिलाकर चाहिए तो वह भी हाजिर है. कीमत है 120 रुपये किलो से लेकर 150 रुपये तक. इस कीमत में आपके लिए गोड्डा, साहेबगंज, चतरा और दुमका से पहुंचे अचार के स्पेशल विशेषज्ञ मुंह खट्टा कराएंगे. बराहाट से आये जयबहादुर कहते हैं कि आप जो भी अचार चाहेंगे मिल जायेगा. हमारे पास कम से कम अचार और मुरब्बे के एक दर्जन से ज्यादा वेराइटी रहती है. गोड्डा के राकेश कहते हैं कि पहले तो वह इलाका भी बिहार ही ना था. यहां आकर कभी अलग नहीं लगता है. आपसी सद्भाव व भाईचारे में इस मेले जैसी कहीं कोई संस्कृति नहीं. लगता ही नहीं कि हम अपने घर से बाहर हैं.

No comments:

Post a Comment