Saturday, January 20, 2018

पिपरा का खाजा ऐसा कि मिले तो बस खा-जा



#टेस्ट ऑफ बिहार, पटना
अपने विशिष्ट स्वाद के लिए जाना जाने वाला सिलाव का खाजा तो आपने खूब खाया होगा लेकिन सुपौल के पिपरा का खाजा भी ऐसा कि मिले तो बस खा जा वाली फीलिंग आयेगी. देश की आजादी से पहले से यहां खाजा बनाने का काम चल रहा है. स्व. गौनी साह ने सबसे पहले यहां जागुर से आकर खाजा बनाने का कारोबार शुरू किया था. स्व. गौनी साह को पिपरा के खाजा मिठाई का आविष्कारक माना जाता है. जब पिपरा बाजार के स्वरूप में नहीं था. उस वक्त एक छोटा सा हाट दुर्गा मंदिर के बगल में पीपल पेड़ के नीचे लगाता था. उसी हाट पर स्व गेनी साह द्वारा शुद्ध घी का खाजा तैयार कर चार आने किलो बेचते थे. वहीं वर्तमान समय में शुद्ध घी का खाजा 200 से 240 रुपये किलो बिक रहा है. अब नेपाल सहित पूर्णिया, बेगूसराय, खगड़िया तक के व्यापारी यहां से खाजा खरीद कर ले जाते हैं. एक अनुमान के मुताबिक प्रतिदिन 10 क्विंटल से अधिक खाजा की बिक्री होती है. पर्वों के समय यह बिक्री डेढ़ गुना तक बढ़ जाती है.

 
शुरू में गोल-गोल बनाया जाता था खाजा, अब लंबाई पर फोकस
स्थानीय खाजा व्यवसायी बताते हैं कि शुरुआती दौर में गोल-गोल खाजा बनाए जाते थे. उसकी विशेषता होती थी कि अगर खाजा पर चवन्नी भी गिर जाए तो धंस जाती थी बाद में लंबा खाजा बनाना शुरू हुआ और लोगों की मांग पर खाजा को कड़ा किया जाने लगा. शुद्ध घी और रिफाइन दोनों से खाजा तैयार किया जाता है. रिफाइन वाला खाजा 80 रुपये और घी का खाजा 240 रुपये प्रति किलो बिकता है.
दिल्ली के प्रगति मैदान मेले की शान रह चुका है खाजा

 अपने विशिष्ट स्वाद व आकार को लेकर मशहुर पिपरा का खाजा की पहचान देश-विदेश में रही है. प्रगति मैदान से लेकर सोनपुर मेला या फिर पटना गांधी मैदान के सरस मेला में लगे पिपरा के खाजा के स्टॉल से इसकी स्वाद पूरे देश में फैली हुई है. साथ ही पड़ोसी देश नेपाल में भी इसकी मांग है. एनएच 106 व एनएच 327 ई क्रासिंग पर स्थित पिपरा बाजार की अर्थ व्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा खाजा मिठाई की बिक्री पर निर्भर करती है. सड़क से गुजरने पर लोग यहां का खाजा खरीदना व खाना पसंद करते हैं. खाजा बनाने वाले कारीगर से लेकर किराना दुकानदार तक की रोजी रोटी इससे जुड़ी हुई है.



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