Saturday, April 7, 2018

स्वाद और सुगंध की धनी भागलपुरी कतरनी

 पटना
कतरनी चावल हो कतरनी का चूड़ा. इसके स्वाद और खुशबू को हर बिहारी अच्छी तरह से समझता है. स्वाद और सुगंध के धनी इस कतरनी को अब अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल गयी है. भागलपुर के कतरनी धान को जियोग्राफिकल इंडिकेशन मिल गया है और इसी के साथ अब भागलपुरी कतरनी की खुशबू राष्ट्रीय स्तर पर फैलेगी. कतरनी के दाने छोटे और सुगंधित होते हैं. पत्तों और डंठल से भी विशेष तरह की खुशबू आती है. यह धान 155-160 दिनों में पककर तैयार होता है. इसके बाद इसकी खुशबू पूरी दुनिया में बिखरती है. ना केवल कतरनी का निर्यात किया जाता है बल्कि कतरनी को बिहारी स्वाद का संदेशवाहक भी माना जाता है.

अंग क्षेत्र की सौगात है कतरनी धान
कतरनी धान अंग क्षेत्र का सबसे पसंदीदा धान है. भले ही इसके उत्पादन को लेकर नये नये प्रयोग चल रहे हैं पर आज भी देश-विदेश में रहने वाले लोग जब वापस आते हैं तो भागलपुर से कतरनी चावल और चूड़ा जरूर ले जाते हैं. दूरदराज में रहने वाले परिजन भी त्योहार व महत्वपूर्ण अवसरों पर अपने संगे-संबंधियों से उपहार के रूप में कतरनी चूड़ा व चावल की मांग करते हैं. इससे यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि भागलपुरी कतरनी की सुंगध व स्वाद के प्रति लोगों में कितना आत्मीय लगाव है.

नेहरू जी को भेंट किया गया था कतरनी चूड़ा
1952 में जब प्रथम प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरू भागलपुर आये थे तो उन्हें तत्कालीन डीएम ने जगदीशपुर प्रखंड के एक किसान के घर ढेकी में तैयार किया गया कतरनी चूड़ा भेंट किया था. जिससे इस उत्पाद की अहमियत अतीत के आइने में भी झलकती है. इसी के साथ देश के नामचीन नेता और शख्सीयत हैं जो बिहार के इस स्वाद के खासे दीवाने रहे हैं.

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