Sunday, April 1, 2018

तीन बेमिसाल बिहारी स्वाद को पहली बार मिली ग्लोबल पहचान

मगही पान, कतरनी धान और जर्दालू आम को मिला जीआई टैग 
-बिहार की पहचान बना आम, धान और पान, भारत सरकार से मिला टैग
-अब तक केवल हस्तकरघा उत्पाद को मिला था टैग
रविशंकर उपाध्याय, पटना

पहली बार बिहारी स्वाद को ग्लोबल पहचान मिली है. जर्दालु आम, कतरनी धान और मगही पान को खांटी बिहारी पहचान मिल गई है़  ज्योग्राफिकल इंडिकेशन जर्नल ने तीनों बिहारी स्वाद को बौद्धिक संपदा अधिकार के तहत जीआइ टैग (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) दिया है़  28 मार्च को इसका प्रमाणपत्र जारी कर दिया गया है़. अब तक केवल बिहार के चार हस्तकरघा उत्पाद ही इस सूची में शामिल थे. जिन हस्तकरघा उद्योगों को जीआई टैग मिल चुका है उसमें मधुबनी पेंटिंग, भागलपुरी सिल्क, सुजनी और खतवा कला जीआइ टैग से युक्त उत्पाद हैं.  शाही लीची को भी अगले महीने तक जीआइ टैग प्रमाणपत्र मिल जाने की उम्मीद है. तीन उत्पादों के लिए बिहार ने 2016 में आवेदन किया था. पत्रिका ने अपने 28 नवंबर के अंक में तीनों फसलों को अद्वितीय उत्पाद मानकर प्रकाशित भी किया था.
नौ साल बाद कामयाब हुई कोशिश
बिहार कृषि विश्वविद्यालय की पहल पर तीनों उत्पादों को पहचान दिलाने की कोशिश नौ साल बाद कामयाब हुई. जुलाई 2008 को हुई पहली बार राज्यस्तरीय बैठक में यह प्रस्ताव आया था. ज्योग्राफिकल इंडिकेशन पत्रिका के मुताबिक जर्दालु आम उत्पादक संघ सुल्तानगंज ने 20 जून 2016 को आवेदन दिया था. तमाम पहलुओं की समीक्षा के बाद केंद्र सरकार ने उत्पादक संघ के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है. कतरनी धान के लिए भी 20 जून 2016 को ही भागलपुर कतरनी धान उत्पादक संघ ने आवेदन दिया था. आवेदन पर मुहर लगते ही इसकी सुगंध को खास पहचान मिल गई। इसी तरह मगही पान के लिए उत्पादक कल्याण समिति देवरी (नवादा) ने आवेदन किया था.
क्यों खास है जर्दालु
भागलपुर में होने वाले हल्के पीले रंग का यह आम 104-106 दिनों में तैयार होता है. वजन 186-265 ग्राम तक होता है. कम रेशे वाले इस आम में शुगर की मात्रा 16.33 फीसद होती है.
कतरनी की खासियत 
दाने छोटे और सुगंधित होते हैं. पत्तों और डंठल से भी विशेष तरह की खुशबू आती है. 155-160 दिनों में पककर तैयार होता है. पत्ते की लम्बाई 28-30 सेमी और पौधे 160-165 सेमी लंबे होते हैं.
इस तरह खास है मगही पान 
कोमलता एवं लाजवाब स्वाद के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है मगही पान. ज्यादातर खेती नवादा, औरंगाबाद और गया जिले में होती है. पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं और आकार दिल की तरह होता है.
यह भी जानिए: दार्जिलिंग चाय को सबसे पहले मिला था जीआई टैग
आसाम के दार्जिलिंग की मशहूर चाय भारत में पहला जीआई टैग उत्पाद 2004-05 में बना था. उसके बाद से मई 2017 तक इस सूची में कुल 295 उत्पाद शामिल हो गये हैं. भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य के रूप में भौगोलिक संकेतों का माल (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1 999 में लागू किया था.  यह कानून 15 सितंबर 2003 से प्रभावी है. जीआई को अनुच्छेद 22 (1) के तहत परिभाषित किया गया है. चेन्नई स्थित भौगोलिक उपदर्शन रजिस्ट्री (जीआइआर) जीआई टैग प्रदान करती है.
क्या है जीआई टैग?
जीआई यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन किसी उत्पाद की पहचान बताने वाली ग्लोबल टैगिंग होती है. जो इसके अधिकृत मालिक या प्रयोगकर्ता को जीआई के टैग लगाने का कानूनी अधिकार प्रदान करता है. गैर-अधिकृत व्यक्ति इसका प्रयोग नहीं कर सकता. जीआई टैग को ‘विश्व व्यापार संगठन’ से भी संरक्षण मिलता है. हर उत्पाद की विशिष्ट पहचान में उसका उद्भव, उसकी गुणवत्ता, प्रतिष्ठा तथा अन्य विशेषताएं शामिल होती है. जीआई दो प्रकार के होते हैं. पहले प्रकार में वे भौगोलिक नाम हैं, जो उत्पाद के उद्भव के स्थान का नाम बताते हैं जैसे दार्जिलिंग चाय आदि. दूसरे  गैर-भौगोलिक पारंपरिक नाम, जो यह बताते हैं कि उत्पाद किसी एक क्षेत्र विशेष से संबद्ध है. जैसे- अल्फांसो, बासमती आदि. अधिकृत उपयोगकर्ताओं के अलावा किसी भी अन्य को लोकप्रिय उत्पाद नाम का उपयोग करने की अनुमति नहीं मिलती है. 

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