Saturday, November 17, 2018

सुगंध और स्वाद ही है रोहतास के सोनाचूर चावल की पहचान

सोनाचूर चावल 
रविशंकर उपाध्याय®पटना.
बिहार के रोहतास जिले का नाम भले ही सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र के पुत्र रोहितेश्वर के नाम पर रखा गया हो लेकिन 1857 तक जिला का एक बहुत ही अनजान इतिहास था. बाबू वीर कुंवर सिंह ने 1857 के विद्रोहियों के साथ ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह किया. कुंवर सिंह के अधिकांश विवरण वर्तमान भोजपुर जिले से संबंधित है हालांकि इस विद्रोह का प्रभाव पड़ा और यहां वहां विद्रोह जैसी घटनाएं उत्पन्न हुई. जिले के पहाड़ी इलाकों ने विद्रोह के भगोड़ों को प्राकृतिक संरक्षण प्रदान किया. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भोजपुर जिले का भारत की स्वतंत्रता आंदोलन में पर्याप्त योगदान था. आजादी के बाद रोहतास शाहबाद जिले का हिस्सा बना रहा लेकिन 1972 में रोहतास एक अलग जिला बना. इन सबके बीच यहां का एक स्वाद लगातार बना रहा जो धरती से जुड़ा है. धान का कटोरा कहे जाने वाले इस जिले रोहतास के सोनापुर चावल को जिसने भी खाया है वह खासियत जानता है. इसे ना केवल स्वाद और सुगंध का राजा कहा जाता है बल्कि अपनी खास कीमत के कारण इस किस्म को किसानों का एटीएम भी कहा जाता है.
सोनाचूर चावल 
रोपनी के समय से ही आने लगती है खुशबू
बिक्रमगंज थाने में नोनहर आदर्श गांव के रहने वाले विश्वंभर भट्ट बताते हैं कि सोनाचुर सुगंधित चावल है. महीन चावल है. आपको बताएं कि जब इसकी रोपनी होती थी तो बिचड़ा के समय से ही सुगंध आना शुरू हो जाता था. खेत के इर्द गिर्द दस फीट का क्षेत्र सुगंधित होना शुरू हो जाता था. रोहतास के बिक्रमगंज क्षेत्र के साथ ही नटवार, दिनारा, नटनोखा, काराकाट आदि क्षेत्र में अच्छी खेती होती है. वे कहते हैं कि अन्य धानों के मुकाबले कम उपज होती है, एक बीघा में यदि कतरनी 16 बोरा होगा तो सोनाचूर 12 बोरा होगा. लेकिन महंगा होने के कारण यह मेंटेंन कर जाता है. पूरे बिहार में सोनाचूर चावल की मांग तो होती ही है, इसका निर्यात भी किया जाता है.

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