Saturday, November 17, 2018

सिंगापुर नहीं नवगछिया ब्रांड है सिंगापुरी केला

रविशंकर उपाध्याय®पटना.
अभी पटना हो या छपरा, बिहारशरीफ हो या मनेर शरीफ. बिहार में हर जगह आपको सिंगापुरी केले मिल जायेंगे. छिलका हरा लेकिन केला पका हुआ. इतना बड़ा कि चार केले खा लें तो फिर कुछ और खाने की इच्छा नहीं हो. पोषण भी और स्वास्थ्य भी. लेकिन क्या आपको पता है कि सिंगापुरी नामक यह केला कोई सिंगापुर से नहीं आया है. बल्कि यह ठेठ बिहारी ब्रांड केला है. पटना उद्यान विभाग के सहायक निदेशक अजीत कुमार यादव कहते हैं कि सिंगापुर नाम कैसे आया इस पर मुकम्मल शोध की आवश्यकता है. दरअसल यह वेराइटी हरी छाल कही जाती है जिसमें रोबेस्ट्रा, जी नाइन, कैवेंडिस के साथ ही सिंगापुरी आदि किस्म आती है. संभवत: लोगों ने इसके बड़े साइज को लेकर इसका नाम सिंगापुरी केला रख दिया गया.

भागलपुर के नवगछिया सब डिविजन में तुलसीपुर गांव में शुरू हुआ 
भागलपुर के नवगछिया सब डिविजन के तुलसीपुर गांव में सिंगापुरी केला की खेती पचास साल पूर्व शुरू हुई थी जो धीरे धीरे ब्रांड बन गया. यह केला बराड़ी के बाद हल्का, पूर्णिया, मधुबनी, सहरसा से खगड़िया और उसके बाद पूरे बिहार में फैल गया. उद्यान निदेशक कहते हैं कि शुरूआत में सिंगापुरी केला इतना लंबा और मोटा नहीं होता था. लेकिन बाद में बड़ा साइज आने लगा. जो रोबस्ट्रा है. अभी पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, समस्तीपुर, खगड़िया, कटिहार, भागलपुर, पूर्णिया, वैशाली, नालंदा, सहरसा, बेगूसराय और पटना तक में इस प्रजाति के केले की खेती होती है. हाजीपुर, मुजफ्फरपुर, वैशाली के बाद नवगछिया तक इस केले की खेती में काफी आगे बढ़ चुका है. यहां पर रोबेस्ट्रा और जी 9 नस्ल के बीज भी मौजूद हैं. यह केला कच्चा सब्जी बनाने के अलावा आटा बनाने तथा चिप्स बनाने के काम में आते हैं. सिंगापुरी के अलावे हमारे यहां हाजीपुर का चीनिया केला, कोसी इलाके का मानकी, किशनगंज जिले का मालभोग केला लोगों के स्वाद में बस चुका है.

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